
हरिशंकर पांडेय
मल्हार- विश्व संग्रहालय दिवस आखिरकार मनाए कहां ये सवाल है प्रागैतिहासिक नगर मल्हार के लोगो का। सवाल इसलिए भी उठता है कि अकूत पुरासंपदा होने के बाद भी आज तक संग्रहालय नही बन पाया जिससे यहां उत्खनन में मिली हजारो प्राचीन प्रतिमाएं खुले आसमान धूल, पानी, धूप व प्रदूषण का निरंतर शिकार हो रही है। जिससे मूर्तियों का क्षरण होने के साथ ही उनका वास्तविक स्वरूप धूमिल हो रहा है। विडम्बना ये है कि जिले के महत्वपूर्ण पुरावैभव की नगरी मल्हार के लिए विभागीय तौर पर संग्रहालय बनाने निर्णय नही लिए गए।
लोगो का मानना है कि क्षेत्रीय व स्थानीय जनप्रतिनिधयों की राजनीतिक इच्छा शक्ति प्रबल नही होने व भारतीय पुरातत्व विभाग की उदासीनता के कारण जिले के महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल व धर्मनगरी मल्हार अपने अकूत पुरावैभव को समेटने के बावजूद भी आज भी पिछड़ा है, जबकि यहाँ के ऐतिहासिक मूर्तियों की गिनती देश के चुनिंदा प्राचीन प्रतिमाओं में होती है। परंतु आज तक संग्रहालय नही बन पाया जिससे यहां की धरोहरें उपेक्षित पड़ी है। वर्षो से पुरावैभव के लिए विख्यात मल्हार की उपेक्षा अब भी हो रही है।।
राज्य बनने के बाद से थी उम्मीद….
सन 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद स्थानीय निवासियों को उम्मीद थी कि छोटे राज्य होने का फायदा मल्हार को मिलेगा क्योकि यहां हजारो लाखो वर्ष पुराने संस्कृति की छाप है यहां धरती के गर्भ में कई राज भी छुपे है जो उत्खनन से सामने आ सकता है। 13 वर्ष पूर्व भारतीय पुरातत्व विभाग के उत्खनन शाखा नागपुर ने यहां प्राचीन किले की खुदाई की थी इस दौरान हजारो की संख्या में प्राचीन वस्तुए प्राप्त हुई थी हालांकि दुर्भाग्यवश खुदाई में मिली सभी चीजें खुदाई करने वाली टीम अपने साथ ले गए जिसको यहां लाकर म्यूजियम में रखने की मांग स्थानीय लोग कई बार चुके है पर सफलता अब तक नही पाई है। इससे पहले भी दो बार उत्खनन का कार्य भी हुआ है जिसमे कई रहस्य सामने आए थे।।
राष्ट्रीय स्तर की प्रतिमाएं….
पुरातत्वविदों के अनुसार यहाँ के हरिहर विष्णु की प्रतिमा देश की पहली पाषाण प्रतिमा है जो मल्हार के एक छोटे से संग्रह कक्ष में पड़ा है। पुरावैभव को समेटने भारतीय पुरातत्व विभाग ने मल्हार के पातालेश्वर मंदिर व देऊर मंदिर को संरक्षित किया। जहां हजारो की संख्या में प्राचीन प्रतिमाए आज भी खुले में पड़ी है और धूल, मिट्टी, पानी के क्षरण हो रहा है विभाग ने अब तक यहां सुसज्जित संग्रहालय का निर्माण भी नही कराया है तो वही राज्य सरकार ने पर्यटकों को लुभाने कोई प्रयास नही किया है। राज्य गठन के बाद भाजपा नीत सरकार के तत्कालीन संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने 2008 में लोगो की मांग पर मल्हार को पर्यटन स्थल घोषित कर विकास कार्य के लिए बजट भी दिया था पर क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि के राजनीतिक इच्छा शक्ति नही होने से काम नही हो पाया। वर्तमान में जिले के एक बड़े नेता छत्तीसगढ़ पर्यटन मण्डल के अध्यक्ष उनसे नगरवासियो को उम्मीद है कि वे धर्मनगरी मल्हार को पर्यटन के क्षेत्र में काम करेंगे परन्तु यहां के जनप्रतिनिधि अब तक उनको मल्हार लाने का प्रयास भी नही किया है।
पर्यटन की अपार संभावनाएं—
यहां प्राचीन मंदिरों के अलावा प्राकृतिक स्थल में भी जिसमे लीलागर नदी के आसपास की जगह, प्राचीन किला, सरोवरे सहित कई ऐसी जगहे है जहां पर्यटकों को लुभाने विकास कार्य किया जा सकता है। इसके अलावा अत्याधुनिक संग्रहालय बनाकर भी नगर की खूबसूरती बढ़ाई जा सकती है। मन्दिरो के आसपास की तालाबो में बोटिंग, पर्यटन कुटीर बनाकर लोगो को आकर्षित किया जा सकता है। इतिहास व भारतीय संस्कृति पुरातत्व द्वारा 1975 से 78 तक प्रो. केडी वाजपेयी के नेतृत्व में उत्खनन का कार्य हुआ था जिसमे कई कालखण्डों के प्रमाण मिले थे। भारतीय पुरातत्व विभाग ने नगर के कई स्थानों को संग्रहालय बनाने या अन्य उपयोग के लिए चिन्हित कर बाउंड्रीवाल बनाकर वर्षो से रखा है। लोगो को उम्मीद थी कि यहां अंतरराष्ट्रीय स्तर का संग्रहालय बनेगा जिसमे हजारो प्राचीन प्रतिमाओं को रखा जाएगा। परन्तु ऐसा कुछ होते नही दिख रहा। नगर के शिक्षक दीपक जायसवाल कहते है कि मल्हार अपने आप मे एक विलक्षण और रहस्य से पूर्ण स्थान है ,यहाँ के कण-कण में भगवान भोलेनाथ की छवि परिलक्षित होती है,यहाँ के प्राचीन धरोहर की सँख्या को उंगली में गिनती करना सरासर अन्याय होगा क्योंकि ये पूरा नगरी ही स्वयं में प्राचीन धरोहर है। रही बात इस धरोहर के संरक्षण और इसके महत्व को प्रतिपादित करने का तो ये भावना बहुत लोगों के मन में है। जिसके लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर का संग्रहालय होना अत्यंत आवश्यक है।
पूर्व पर्यटन सलाहकार सदस्य अजय शर्मा कहते है मल्हार में शासकीय व सामुदायिक दोनों तरह के ईमानदार प्रयास की आवश्यकता है। जनभागीदारी से हुए विकास को प्रोत्साहन सरकार देती है और इंफ्रास्ट्रक्चर विकास सरकार करती है। पुरावैभव को बचाने सुसज्जित संग्रहालय की स्थापना अत्यंत आवश्यक है। अधिवक्ता राजकिशोर पांडेय का कहना है कि मल्हार ऐतिहासिक नगरी है जो निस्संदेह छत्तीसगढ़ का एक प्रसिद्ध तीर्थ है। समय समय पर मल्हार के विद्वान लेखकों ने मल्हार की महिमा पर अनेकों लेख लिखे हैं जिन्हें नजरअंदाज किया जाता रहा है। पुरातात्विक दृष्टिकोण से मल्हार अत्यंत समृद्ध है, जिनसे मल्हार का ऐतिहासिक वैभव व्यक्त होता है । धार्मिक ग्रँथों के अनुसार भगवान श्रीराम वनगमन के समय न सिर्फ मल्हार से गुजरे हैं बल्कि यहाँ बहुत समय भी बिताए हैं। मल्हार को लेकर शासन प्रशासन की घोर उपेक्षा निरंतर परिलक्षित होती रही है। पुरातत्व विभाग भी अब मल्हार के प्रति उदासीन हो चला है। मल्हार को पर्यटन केंद्र बनाने को लेकर भी संबंधित विभागों में उदासीनता है। स्थानीय लोगों की उदासीनता भी एक महत्वपूर्ण कारण है जिससे सरकार का ध्यान मल्हार की ओर आकर्षित नहीं हो रहा। यह अत्यंत आवश्यक है कि मल्हार के इतिहास पर गहन अन्वेषण किया जाए। बिहारी लाल कैवर्त कहते है कि संग्रहालय हर एक देश की सांस्कृतिक धरोहर को प्रदर्शित करता है। म्यूज़ियम्स के द्वारा उस जगह की संस्कृतियों को जानने-समझने का मौका मिलता है। संग्रहालय संस्कृति के आदान-प्रदान और संस्कृति के संवर्धन में भी महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। समृद्ध संस्कृति, परंपरा का प्रचार और संरक्षण करने में भी संग्रहालय विशिष्ट योगदान देता है।
परन्तु हम मल्हार वासियो को अकूत पुरासम्पदा होने के बाद भी यह सौभाग्य नही मिल रहा कि अपनी धरोहर को संजोकर कर सकें। पुरातत्व प्रेमी हरि सिंह क्षत्री का कहना है कि मल्हार छत्तीसगढ़ राज्य का अब तक ज्ञात सबसे प्राचीनतम नगर है जहाँ ईसापूर्व 1000 से आधुनिक युग तक लगातार इतिहास और पुरावैभवों को देखा जा सकता है, यहाँ दो बार हुए उत्खननों ने इसे प्रमाणित भी किया है। संग्रहालय के नाम पर चंद मूर्तियों को लगाकर खानापूर्ति की गई है। केन्द्र सरकार से करोड़ों का अनुदान मिलता है संग्रहालय निर्माण के लिए , परंतु इस दिशा में भी पहल नहीं की जाती है। यहाँ संग्रहालय का निर्माण कराकर यहाँ हुए उत्खननों से प्राप्त पुरावैभवों को प्रदर्शित किया जा सकता है। इससे यहाँ पर्यटकों को प्राचीन मल्हार की संस्कृति और सभ्यता को देखने को मिलेगा साथ ही मल्हार में अनेकों रोजगार सृजन होगा।