छत्तीसगढ़बिलासपुर

कचरे की ढेर में जिंदगी तलाशती पूजा के कंधे पर 10 जिंदगियों का बोझ, मां- बाप दोनों बनकर यह जिम्मेदारी निभा रही एक गुमनाम नायिका

अगर सरकार सच कहती है, तो फिर पूजा की जिंदगी इतनी मायूस करने वाली क्यों है।अगर सरकार सच कहती है, तो फिर पूजा की जिंदगी इतनी मायूस करने वाली क्यों है

बिलासपुर प्रवीर भट्टाचार्य

वक्त और हालात इंसान को कई बार लड़ना सिखा देते है। जिंदगी एक जंग है और जीने की जिजीविषा के चलते लोग किसी भी हद से गुजर सकते हैं। बात जब अपनों के लिए जीने की होती है तो फिर अबला भी सबला बन जाती है।ये सभी बातें पूजा पर सटीक बैठती है। पूजा साहू कहने को तो एक कमजोर सी आम महिला है , लेकिन उसने अपने कमजोर से कंधे पर 10 लोगों की जिम्मेदारी उठा रखी है। कचरे के ढेर में कचरा तलाशती पूजा, दरअसल कचरा नहीं ,अपने और अपनों के लिए जिंदगी तलाश रही है। कचरे के ढेर में, खुद के साथ 9 लोगो के पेट भरने की तलाश भी शामिल है। जिससे चाहते, ना चाहते हुए भी उसे पूरा करना पड़ रहा है ।रोज कचरे के ढेर में कचरा बिनती या फिर कचरा सायकल रिक्शे के पेडल पर पैर मारती पूजा साहू की ओर शायद ही कोई ध्यान देता होगा ।आम लोगों के लिए पूजा की शख्सियत बेहद मामूली और नाकाबिले गौर है, लेकिन पूजा ने अपने कंधों पर जिस तरह पूरे परिवार की जिम्मेदारी उठा रखी है, वही बात उसे किसी नायिका से कम नहीं साबित करती । पूजा किसी और के लिए रिक्शा चलाने वाली या फिर कचरा बीनने वाली होगी, लेकिन अपनों के नज़र में तो पूजा में भी एक ऐसी नायिका छुपी हुई है ,जो जिंदगी से लड़ना जानती है।
आम युवती की तरह पूजा ने भी कभी घर बसाने ,शादी और बच्चों के सपने देखे थे, लेकिन वक्त और हालात की ठोकर से उसके सपने एक-एक कर चूर होते चले गए। आज तिफरा मन्नाडोल में बेजाकब्जा कर बनायीं गयी झुग्गी में रहने वाली पूजा उम्र के तीसरे दशक में पांव रख चुकी है ।शादी की उम्मीदें दिन बी दिन धूमिल होती जा रही है।
कभी घर पर राजकुमार साहू जैसा बड़ा भाई था तो उम्मीदें आसमान छूती थी। लगता था की कैटरिंग का काम करने वाला बड़ा भाई उसका भी घर बसाएगा, लेकिन मुसीबत कब दबे पांव चली आई किसी को पता ही नहीं चला । 3 साल पहले एक सड़क हादसे में पूजा के बड़े भाई राजकुमार साहू और उनकी पत्नी बृहस्पति की मौत हो गई ।जिस पूजा की जिम्मेदारी बड़ा भाई उठा रहा था इस हादसे के बाद पूरे परिवार के साथ भाई के बच्चों की जिम्मेदारी भी पूजा पर ही आ गई। पहले से ही घर पर सदस्यों की संख्या अधिक थी ।और घर में एकमात्र कमाने वाले बड़े भाई की मौत के बाद पूजा पर मानों पहाड़ टूट पड़ा । लेकिन अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए पूजा ने एक बेटा बनकर गृहस्थी की गाड़ी अपने कंधों से खींचने का मजबूत इरादा कर लिया।आज पूजा सिर्फ एक कमाऊ बेटी भर नहीं है बल्कि घर की जिम्मेदारी भी किसी मां की तरह वह संभालती है। जब घर से बाहर पूजा होती है तो वह एक पिता की भूमिका में होती है तो वही पूजा घर पहुंचकर बच्चों के लिए मां बन जाती है। पूजा के भाई की मौत के बाद बेटे के गम में उसकी मां भी चल बसी ।एक तरफ गरीबी की मार ,ऊपर से जिम्मेदार लोगों का यूं बिछड़ जाना। इससे पूरा परिवार बिखरता चला गया। लेकिन पूजा ने कभी हार नहीं मानी । एक वह भी दौर था जब पढ़ाई लिखाई के बाद पूजा एक निजी स्कूल में पढ़ाने लगी थी, लेकिन वहां मिलने वाली मामूली वेतन से घर का खर्चा चल नहीं रहा था। जिसके बाद पूजा ने अपनों के लिए वह करने की ठानी, जिसके बारे में उसने भी कभी नहीं सोचा था। आज पूजा कचरे के ढेर से कबाड़ इकट्ठा करती है और आमदनी के लिए रिक्शा भी चलाती है । इन सब से उसे बमुश्किल 4000 रुपये ही मिलते हैं। लेकिन इससे ही उसके घर का चूल्हा जल रहा है ।

घर पर मौजूद 10 लोगों के पेट की आग बुझ रही है। बेहद मामूली दिखने वाली पूजा साहू के इरादे आसमान छूने वाले हैं। सुबह शुरुआत कबाड़ बीनने से होती है तो दिन भर वह रिक्शा चलाती है। शाम को आमदनी के लिए कभी सब्जी बेचने पहुंच जाती है तो कभी चाय बेचने । पूजा की यह कोशिश इसलिए है ताकि उस पर आश्रित लोगो को कभी भूखा ना सोना पड़े।
जिंदगी ने पूजा को इतने दर्द दिए हैं कि अब वह पत्थर की हो चुकी है। इन पथराई आंखों में अब आंसू भी नहीं आते। लेकिन अफसोस आज भी उसकी बातों महसूस की जा सकती है। भाई की मौत को 3 साल हो चुके हैं। लेकिन आज तक सड़क हादसे के बाद परिवार को मुआवजा नहीं मिला। इसका मलाल पूजा को है। और वह इसके लिए राज्य सरकार की नीतियों के साथ उन वकीलों को भी दोषी मानती है ,जिनकी वजह से उसे उसका हक नहीं मिल पाया।
जिंदगी जब कुछ छीन लेती है तो बहुत कुछ देती भी है। एक एक कर जब परिवार के लोग साथ छोड़ कर चले गए, तब पड़ोसियों ने यथासंभव उसकी मदद की। हर संकट में मोहल्ले में रहने वाले लोग पूजा के साथ खड़े नज़र आये। लेकिन मुश्किल यह है कि वे भी पूजा की तरह ही आर्थिक रूप से कमजोर थे। इसलिए घर में मौजूद बच्चों और बूढ़ों की भूख मिटाने की लड़ाई पूजा को खुद ही लड़नी पड़ रही है। पूजा जानती है उसके ही कंधों पर सबकी जिम्मेदारी है ।इसलिए अपना जीवन परिवार पर न्योछावर करते हुए उसने कभी भी शादी नहीं करने का फैसला लिया है। क्योंकि वह जानती है कि उसकी शादी के बाद उसका घर, उसके अपने पूरी तरह बिखर जाएंगे।
सरसरी तौर पर देखें तो पूजा ना तो आपको प्रभावित करेंगी और ना ही उसकी कहानी। लेकिन अगर एक पल के लिए आप खुद को पूजा की जगह रख कर देखेंगे तो उस एहसास से गुजर पाएंगे, जिस तकलीफ से पूजा पिछले 3 साल से गुजर रही है। 10 लोगों का परिवार और कमाई बेहद मामूली। अधिकांश घर में बच्चे हैं इसलिए पूजा की मदद करने वाला भी कोई नहीं । पूजा जानती है आने वाले कुछ सालों तक उसे यूं ही हाड़ तोड़ मेहनत करनी है ।तभी 10 पेट की ज्वाला शांत होगी ।
पूजा की जिंदगी बेहद तकलीफ भरी है। शायद इन्हें ही हाशिए पर ,अंतिम पंक्ति के लोग कहते हैं ।सारी सरकारी नीतियां ऐसे ही दबे कुचले लोगों के लिए बनती है। लेकिन हैरानी है कि पूजा के परिवार को ऐसा कुछ कभी हासिल नहीं हुआ। रोज कुआं खोदकर, रोज पानी निकाल रही पूजा जानती है कि परिवार का पेट भरने के लिए उसे इसी तरह रोज काम करना है। उसकी जिंदगी में कोई फरिश्ता बनकर आने वाला नहीं । न हीं कोई तिलिस्म होने वाला है। जिंदगी, बदले में में क्या कीमत वसूलती है, यह पूजा से बेहतर भला कौन जान सकता है। पूजा को मलाल इसी बात का है कि अगर उसे सिर्फ भाई की मौत का मुआवजा ही मिल जाए तो भी वह ऐसा कुछ कर सकती है, जिससे परिवार को आर्थिक संबल मिल सके। लेकिन मुश्किल यह है कि इतना भी मुमकिन नहीं हो पा रहा। पता नहीं सरकारे किन लोगों के लिए सब कुछ करने का दावा करती है। आखिर वह कौन लोग हैं, जिनके लिए सरकार नीतियां बनाती है। अगर सरकार सच कहती है, तो फिर पूजा की जिंदगी इतनी मायूस करने वाली क्यों है।

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