
प्रवीर भट्टाचार्य

महापौर पद के लिए आरक्षण की स्थिति साफ होते ही लगातार नए नए दावेदार अपना दावा ठोकने लगे हैं। बिलासपुर महापौर पद सामान्य होने से अब शहर की सियासत ज़ाहिर तौर पर गर्मायेगी। कई नए पुराने चेहरे अपनी दावेदारी करने को लेकर बेताब हैं और उन्होंने अभी से अपनी लॉबिंग शुरू कर दी है। अगर हम इतिहास के झरोखे में झांके तो बिलासपुर के सबसे पहले निगम के महापौर बने थे अशोक राव। उनका कार्यकाल 1983 से 1984 के बीच था । उसके बाद बलराम सिंह, श्री कुमार अग्रवाल भी महापौर बने। चुनाव लड़कर सबसे पहले पार्षद बनने वाले प्रत्याशी थे राजेश पांडे। जिनका कार्यकाल 1995 से 2000 तक रहा । वही उमाशंकर जायसवाल भी 2000 से 2005 तक महापौर रहे। पहले महापौर का पद आरक्षित नहीं होता था। स्वर्गीय अशोक पिंगले 2005 से 2008 तक महापौर रहे। उनके निधन के बाद विनोद सोनी ने 2009 से 2010 तक यह जिम्मेदारी संभाली । 2010 से 2015 तक वाणी राव महापौर बनी तो वही 2015 से अब तक मौजूदा मेयर किशोर राय अपनी जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। इस बार बिलासपुर सीट सामान्य होने से ढेर सारे प्रत्याशियों के नाम उभरकर सामने आ रहे हैं। फिलहाल मुकाबला भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस और छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के बीच होने के साथ यह भी साफ है कि कुछ निर्दलीय प्रत्याशी भी मैदान में ताल ठोकेंगे । सामान्य सीट होने से यह संभावना कम होती जा रही है कि इस बार आरक्षित वर्ग के दावेदारो को मौका मिलेगा। सबसे ज्यादा संख्या सामान्य और ओबीसी वर्ग से होने से प्रत्याशियों की संख्या भी बढ़ी होगी ,इसलिए अभी से नेताओं की कुंडली खंगालने शुरू हो चुके है ।

जाहिर तौर पर सभी पार्टियों के लिए टिकट वितरण का काम आसान नहीं होगा। जितने अधिक प्रत्याशी होंगे उतनी अधिक बगावत और भितरघात की संभावना भी होगी। पिछले कुछ वर्षों की तरह इस बार भी भारतीय जनता पार्टी में टिकट का फैसला पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल के बंगले से ही होगा। अमर अग्रवाल ने तो इस बार भी निकाय चुनाव में भाजपा की सरकार बनने का दावा किया है, इसके लिए उन्होंने भले ही वरिष्ठ पदाधिकारियों की बैठक बुलाने और उनकी रायशुमारी लेने के साथ वार्डों में कार्यकर्ताओं की भी इच्छा जानने की बात कही हो, लेकिन सभी जानते हैं कि अंतिम मुहर उन्हीं के द्वारा लगाई जाएगी ।वहीं भारतीय जनता पार्टी में दूसरे शक्ति केंद्र बनकर उभरे हैं धरमलाल कौशिक। नेता प्रतिपक्ष होने के अलावा वे भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं और फिलहाल जिले के चार विधायक उन्हीं के साथ है। वार्डो के परिसीमन के बाद अब उनकी ताकत भी बढ़ी हुई है। मगर इस बार भारतीय जनता पार्टी निकाय चुनाव अमर अग्रवाल के नेतृत्व में लड़ेगी इसलिए बहुत मुमकिन है कि प्रत्याशी चयन को लेकर तनातनी हो । भारतीय जनता पार्टी से कुछ नाम उभरकर सामने आ सकते हैं, उनमें अमर अग्रवाल के करीबी प्रवीण दुबे , राजेश मिश्रा ,रामदेव कुमावत के अलावा मौजूदा महापौर किशोर राय भी हो सकते हैं । कुछ चौंकाने वाले नाम भी सामने आ सकते हैं, जिनमें राजेश त्रिवेदी, रामू साहू , व्ही रामा राव, हर्षिता पांडे, शैलेंद्र यादव, संजय मुरारका, सुशांत शुक्ला, दाऊ शुक्ला, दीपक सिंह ठाकुर के नाम भी हो सकते हैं ।ऐसा भी मुमकिन है कि पार्टी लोकसभा चुनाव की तरह किसी अप्रत्याशित प्रत्याशी का नाम अंतिम समय घोषित करें, क्योंकि इसी रणनीति पर भारतीय जनता पार्टी ने कामयाबी हासिल की थी। वैसे संभावित नामो में गुलशन ऋषि, डॉ विनोद तिवारी, अशोक विधानी और पूजा विधानी का नाम भी हो सकता है।
छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस की स्थिति हाल फिलहाल में काफी कमजोर हुई है लेकिन उनके द्वारा बिलासपुर महापौर प्रत्याशी के रूप में विशंभर गुलहरे, मार्गरेट बेंजामिन ,प्रशांत त्रिपाठी या विक्रम विक्रांत तिवारी में से किसी को आजमाया जा सकता है।

प्रदेश की सत्ता में वापसी के बाद कांग्रेस आत्मविश्वास से लबरेज है और कांग्रेस को पूरा भरोसा है कि 25 साल बाद बिलासपुर शहर महापौर की सीट अनारक्षित हुई है, इससे एक तरफ जहां शहर को बेहतर महापौर मिलेगा वहीं कांग्रेस के लिए भी संभावना मुफीद है। कांग्रेस से अटल श्रीवास्तव भी संभावित प्रत्याशी हो सकते हैं, लेकिन लगता नहीं कि प्रदेश में उनका जो कद है उसके बाद वे खुद को महापौर के तौर पर समेटना चाहेंगे। उनके अलावा विजय पांडे, पूर्व महापौर राजेश पांडे,डॉ विवेक बाजपेई, शिवा मिश्रा, शेख नजिरुद्दीन, महेश दुबे टाटा, तैय्यब हुसैन, रविंद्र सिंह, संध्या तिवारी ,वाणी राव भी संभावित प्रत्याशी के तौर पर देखे जा रहे हैं ।लगातार नए नए प्रत्याशी अपने स्तर पर दावा ठोक रहे हैं। बुधवार को ही जहां भारतीय जनता पार्टी से शैलेंद्र यादव स्वघोषित महापौर प्रत्याशी बने उसी तरह गुरुवार को कांग्रेस नेता रविंद्र सिंह ने भी महापौर बनने की इच्छा जाहिर की। छात्र राजनीति से लेकर वार्ड की राजनीति में उनका खासा अनुभव है और संगठन में भी उन्होंने अच्छा खासा काम किया है इसलिए मुमकिन है कि कांग्रेस रविंद्र सिंह को मौका दे, लेकिन फिलहाल कांग्रेस में जिस तरह से गुटबाजी हावी है उससे किसी भी प्रत्याशी पर फिलहाल उंगली रखना सही नहीं लगता। अभी तो शुरुआत है ।धीरे-धीरे और भी प्रत्याशी उभर कर सामने आएंगे जिसके बाद मुकाबला चुनाव से पहले ही काफी दिलचस्प हो जाएगा यह उम्मीद गहराने लगी है। वैसे बिलासपुर की राजनीति के लिए महापौर का पद शापित है। इतिहास गवाह है कि शुरुआती दौर को छोड़कर बाद के जितने भी महापौर बने, वे इस पद से ऊपर नहीं उठ पाए ।राजेश पांडे से लेकर वाणी राव तक सभी के महापौर बनने के बाद उनकी राजनीति सिमट कर रह गई।
