
रमेश राजपूत/जुगनू तंबोली
बिलासपुर- विश्व में एक ओर जब इस वैश्विक महामारी का अंधेरा छाने लगा तो धरती के भगवान माने जाने वाले डॉक्टर्स और मेडिकल टीम ने जो उम्मीद का दिया जलाया उसी की देन है कि आज देश में इस कोरोना वायरस से लड़ने का हौसला सभी के दिलों में जगमगाने लगा है, उजाले की किरण बनकर आने वाले इन असल योद्धाओं को इतिहास भी याद रखेगा, जिन्होंने अपने पूरे समर्पण और निष्ठा से मानव जीवन की रक्षा के लिए अपनी जान की बाजी भी लगा दी। यूँ तो इन योद्धाओं को किसी एक तस्वीर या किसी एक लाइन लिख कर अभिव्यक्त नही किया जा सकता लेकिन उस उजाले की उम्मीद को निरंतर जलाएं रखने प्रोत्साहित करने प्रयास जरूर किया जा सकता है।
रतनपुर की बेटी बनी मिसाल….
इन्ही योद्धाओं में से एक है बिलासपुर जिले के रतनपुर की बेटी जो इस समय रायपुर एम्स के कोरोना वार्ड में जूनियर रेसिडेंट मेडिकल ऑफिसर के पद रहकर अपनी ड्यूटी कर रही है। रतनपुर निवासी शिक्षक दंपत्ति अनिल शर्मा और मीरा शर्मा की पुत्री डॉ प्राची शर्मा देश के अन्य योद्धाओं के साथ ही प्रदेश में अपनी सेवा दे रही है, जिसने चीन से अपनी चिकित्सकीय पढ़ाई पूरी कर छत्तीसगढ़ में कार्य करने का निर्णय लिया और जुट गई अपनी ड्यूटी में, सालो की तड़प के बाद घर लौटने पर भी मा बाप के बीच जिसने फुर्सत के दो पल ना बिता सकी, वही बेटी अब उन्हें अपने पेशे का वास्ता दे कर, पैरों में जंजीर डाल दी है।
प्रदेश के भविष्य को विरलता से सींचने वाले शिक्षक दंपत्ति भी अपने जिगर के टुकड़े की बात टाल भी नही सकते है। क्योकि पहले ही शहर के चकाचौंध से दूर रतनपुर में पलि बढ़ि अपने गुड़िया के देशसेवा के सपनो से वाकिफ़ है। उनकी माने तो प्राची बचपन से ही देश के सेवा के लिए प्रतिबद्ध थी। इसी इच्छा शक्ति ने ही उसे अपने जीवन का लक्ष्य दिया। जो अब डॉक्टर बन कर, कोरोना संक्रमण के खिलाफ जंग में कूद गई है। रोजाना 12 घन्टे की ड्यूटी के बाद जब वह दिनभर की जानकारी मां से साझा करती है, तो माँ के आँखों मे भी खुशी के आशु भर आते है। वह कहती है कि कोरोना के जंग से जीत कर मरीज जब नम आंखों से बालाएं लेते है। तो उस वक्त जो सुकून मिलता है। उसे लफ्जो में बयां कर पाना मुश्किल है, यही एक वजह है जो आज माता पिता के साथ ही पूरा देश ऐसे योद्धाओं के कार्य से गौरवान्वित महसूस कर रहा है।
सब्र और सहयोग से जंग में साथ कि जरूरत
कोरोना के खिलाफ इस जंग में भले ही उन्हें सेना के जवानों की तरह बंदूकें नही उठानी पड़ रही हो, लेकिन यह जंग उस जंग से कतई कमतर नही है, इसमे भी उससे अधिक रिस्क है, जिसकी चपेट में आकर जान तक गंवानी पड़ सकती है। इसके बावजूद ये कोरोना वारीयर्स इस जंग के मैदान में डटे हुए है। आज को बचाने अपना सब कुछ लगा देने वाले कोरोना वारीयर्स हमेशा प्रेरणा की मिशाल बने रहेंगे, जरूरत है पूरे देश को सब्र और सहयोग की भावना के साथ इस जंग में साथ देने की।