प्रवीर भट्टाचार्य
ईद खुशियों का त्योहार है और खुशियां बांटने से बढ़ती है। यह बात भले ही संकीर्ण मजहबी दीवारों की वजह से बड़े न समझ पाए लेकिन स्कूल के कुछ छोटे-छोटे बच्चों ने इस बात को बखूबी समझा और अपनी जेब खर्च से उन बच्चों के चेहरे पर मुस्कान लाने की कोशिश शुरू कर दी जिनके लिए सुविधाएं आसानी से मुहैया नहीं होती । आम धारणा है कि कॉन्वेंट और बड़े-बड़े स्कूलों में पढ़ने वाले संपन्न घरों के बच्चों की सोच खुद तक ही सिमट कर रह जाती है। वे सिर्फ अपने ही स्वार्थ और तरक्की, खुशी के बारे में सोचते हैं, लेकिन इसी दुनिया में ऐसे मासूम बच्चे भी हैं जिन्हें दूसरे की तकलीफ भी दर्द पहुंचाती है। उन बच्चों की गुरबत और छोटी छोटी चीजों को पाने की हसरत, उनके मन को कचोटती है।
ऐसे ही संभ्रांत स्कूल के कुछ बच्चों ने साधन, संपन्न हीन बच्चों के चेहरे पर थोड़ी सी मुस्कान लाने, उनकी खुशियों का जरिया बनने एक वेलफेयर सोसायटी “मासूमियत ” का गठन किया है । मासूमियत की फाउंडर हिना खान बचपन से ही बेहद संवेदनशील रही है । हिना का अंतर हमेशा उन बच्चों की तकलीफ से नम हुआ करता था, जिन्हें खुशियां आसानी से नहीं मिल पाती। जिनके माता-पिता उनकी छोटी-छोटी जरूरते भी केवल गरीबी की वजह से पूरा नहीं कर पाते।
ऐसे ही बच्चों के लिए कुछ करने का इरादा लिए हिना खान ने अपने चंद स्कूली दोस्तों के साथ मासूमियत का गठन किया। हिना खान जैसे ही इरादे रखने वाले रित्विक, उत्कर्ष, खुशी, सिद्धि, आयुष, गौतम ,दीक्षा और अन्य बच्चे अब बिलासपुर और आसपास के झुग्गी झोपड़ी बस्तियों में जाकर उन बच्चों के लिए कुछ करना चाहते हैं जिनके लिए लगता है कि कुछ करना जरूरी है।
सरकारी कोशिशें अपनी जगह है, लेकिन बस्तियों में रहने वाले बच्चे कॉन्वेंट स्तर की शिक्षा, प्रशिक्षण और जिंदगी जीने की कला नहीं सीख पाते है। जो इन बच्चों ने बड़े स्कूलों में सीखा है।
अब उन वंचित शोषित बच्चों के बीच जाकर मासूमियत उन्हें वही सिखाने की कोशिश कर रही हैं। ये खुद बच्चे हैं, लेकिन अपना जेब खर्च इकट्ठा कर ये दूसरे बच्चों के लिए खुशियां खरीद रहे हैं। मासूमियत के मेंबर सभी बच्चे सोलह सत्रह साल के हैं , इन्हें लगता है की गरीबी , कई बच्चों से उनका बचपन छीन रही है। गरीबी की वजह से वे न तो ठीक से पढ़ पाते हैं ,ना उन्हें सही भोजन मिल पाता है और ना ही वे जीवन जीने की वह कला सीख पाते हैं ,जो बड़े स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को सहज सुलभ है। पिछले करीब 1 महीने से यह बच्चे शहर के अलग-अलग हिस्सों में जाकर बच्चों के बीच अपनी मासूमियत बिखेर रहे हैं। सबसे पहले मासूमियत की टीम पिछले महीने 5 मई को सरकंडा रिकांडो बस्ती गई थी। जहां मौजूद बच्चों के साथ घुलना मिलना पहले पहल आसान नहीं लगा । बड़ों ने भी बीच में दीवार बनने की कोशिश की लेकिन फिर जब दोनों के बीच दोस्ती होने लगी तो दीवार ढहती चली गई। इन बच्चों ने अपने साथ लाए चॉकलेट, वेफर आदि उन बच्चों को दिए तो फिर सभी बच्चे उनके साथ घुलमिल गए और सब ने आपस में कई मजेदार गेम खेलें । मासूमियत के वॉलिंटियर्स ने उन बच्चों को कुछ पोयम, गिनती और अल्फाबेट भी सिखाए ।
अगली कड़ी में इन बच्चों ने मुरूम खदान के स्लम एरिया का दौरा किया। वहां मौजूद स्कूल और मदरसे के बच्चों के बीच पहुंचकर इन बच्चों ने मोटिवेशन स्पीच दिया। उन बच्चों को कोरे कागज देकर उन्हें लिखना सिखाया गया ।अपने साथ लाए गए स्टेशनरी और अन्य सामग्रियां प्रदान की गई। मासूमियत की टीम नगोई गांव की पहुंची थी ,जहां आंगनबाड़ी में इकट्ठा हुए बच्चों के साथ भी इन्होंने अपना अच्छा वक्त बिताया। उन बच्चों को पेंटिंग बनाने का अवसर दिया और अच्छी पेंटिंग बनाने पर ढेर सारे गिफ्ट भी दिए गए।
ईद से 1 दिन पहले अंतिम इफ्तार पार्टी भी मासूमियत के बच्चों ने मुरूम खदान स्थित करीब इस्लामिया मदरसा मे आयोजित की।इसके लिए बच्चों ने खुद मदरसे का डेकोरेशन किया । करीब 40 से 50 बच्चों के इफ्तार की व्यवस्था भी इन बच्चों ने अपने ही जेब खर्च से की । यहां इकट्ठा हुए बच्चों को मोटिवेशन स्पीच देते हुए हिना खान ने बताया कि ईद की असली तासीर क्या है। ईद की खुशियां आपस में बांटने से ही बढ़ती है। धर्म, जाति, अमीरी गरीबी के भेदभाव से परे ईद मेल मिलाप का संदेश देती है।
इस दिन बच्चों की हौसला अफजाई के लिए छत्तीसगढ़ी फिल्मो के आर्टिस्ट अखिलेश पांडे और सोनम अग्रवाल भी इनके बीच पहुंचे थे। मासूमियत के बच्चों ने गांव के बच्चों को यह सिखाया कि किस तरह मेहमानों का स्वागत किया जाता है। इसी ट्रेनिंग का ही असर था की बस्ती के बच्चों ने अखिलेश पांडे और सोनल अग्रवाल का शानदार ढंग से स्वागत किया। अखिलेश और सोनल ने भी बच्चों के साथ काफी अच्छा वक्त बिताया । उनके साथ मस्ती करते हुए अपने अनुभव भी साझा किये। साथ ही कहा कि वे इन बच्चों के लिए, इनकी मदद के लिए हमेशा उपलब्ध है और रहेंगे । यहाँ इफ्तार पार्टी के बाद ईद के मद्देनजर एक दूसरे के गले लगकर मुबारकबाद दी गई। ईद पर सभी बच्चों को ईदी का बेसब्री से इंतजार होता है ।
मासूमियत के सदस्यो ने भी अभिभावक बन कर मदरसे के बच्चों को ईदी के रूप में ढेर सारे गिफ्ट दिए, जिनमें चॉकलेट, खिलौने , कॉइन आदि शामिल थे। आजकल के बच्चे महंगे ब्रांडेड कपड़े, नए मॉडल के मोबाइल, महंगी बाइक्स और बेहतर लाइफ़स्टाइल के लिए अपने पैरंट्स से फरमाइश करते रहते है और अपनी जेब खर्च का भी अधिकांश हिस्सा अपने ही शौक और मौज-मस्ती पर जाया करते हैं ।ऐसे में यह दुर्लभ बच्चे हैं जो अपनी जेब खर्च का ऐसा नेक इस्तेमाल कर रहे हैं।
अभी तो यह मासूमियत की शुरुआत भर है । धीरे-धीरे जब यही मासूमियत पूरे फिजा में फैलेगी तो जाहिर है कई चेहरों पर मुस्कान तो खिल आएगी ही।