प्रवीर भट्टाचार्य
हिंदू धर्म में ईश्वर आराध्य तो है ही, लेकिन ईश्वर के साथ मानव का संबंध स्नेह और प्रेम का है। जहां भय का कोई स्थान नहीं है। यहां भगवान से आतंकित नहीं हुआ जाता बल्कि उन्हें अपने ही परिवार का सदस्य मानकर कभी-कभी तो उनसे मानवोचित व्यवहार ,अनुष्ठान किए जाते हैं । इसके सबसे बड़े प्रतीक है भगवान जगन्नाथ। इस जग के स्वामी , भगवान जगन्नाथ की ही कृपा से पूरा संसार गतिमान है, लेकिन भगवान खुद को एक सामान्य मानव की तरह प्रदर्शित करते हैं ताकि उनके भक्तों में भी कुंठा उत्पन्न ना हो। इसी स्वरूप का प्रतीक है जगन्नाथ रथ यात्रा।
इस रथ यात्रा से पूर्व स्नान पूर्णिमा पर भगवान जगन्नाथ अपने भ्राता बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ अधिक स्नान करने के कारण बीमार पड़ गए। असल में यह प्रतीक है । जन्म मृत्यु से परे भगवान ना तो बीमार पड़ते हैं और ना ही अमरत्व प्राप्त ईश्वर की मृत्यु संभव है। असल में इन प्रतीको से ईश्वर और भक्तों का निकट साक्षात्कार होता है । ऐसा ही इन दिनों श्री जगन्नाथ मंदिर में हो रहा है। स्नान पूर्णिमा पर बीमार पड़े भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की सुश्रुषा उनके भक्त कर रहे हैं। विधिवत उनका उपचार किया जा रहा है । इसके लिए गर्भगृह से उनकी प्रतिमाओं को निकाल कर स्थानांतरित किया गया है । यहां भगवान सिहासन पर नहीं विराजे हैं बल्कि उन्हें खाट पर विश्राम कराया जा रहा है। भगवान श्री जगन्नाथ को राजषी वेशभूषा से मुक्त रखते हुए हल्के सामान्य वस्त्र पहनाए गए हैं। उपचार के 15वें दिन उन्हें परवल का रस पिलाया गया । जन भावना है कि परवल के गुणकारी रस को पीकर वे स्वस्थ हो उठेंगे।
इन दिनों भगवान जगन्नाथ का उपचार विभिन्न प्रकार के औषधि युक्त काढ़े से भी किया जा रहा है। भगवान को अर्पित करने के बाद यही काढ़ा और परवल का रस श्रद्धालुओं में प्रसाद रूप में वितरित भी किया जा रहा है। मान्यता की है कि इस गुणकारी प्रसाद को ग्रहण करने से भक्तों को भी सामान्यतः कोई बीमारी नहीं घेरती। जल्द ही भगवान जगन्नाथ अपने भाई और बहन के साथ स्वस्थ हो जाएंगे। इसके बाद नेत्र उत्सव मनाया जाएगा। 2 जुलाई को बिलासपुर स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर में भी नेत्र उत्सव मनाने की तैयारी की जा रही है। इस दिन भगवान स्वस्थ होकर अपने नेत्र खोलेंगे और उनका विशेष श्रृंगार कर अनुष्ठान पूर्वक उनकी पूजा-अर्चना की जाएगी। 4 जुलाई को भगवान स्वयं भक्तों के बीच होंगे। राजसी वेशभूषा और भव्य श्रृंगार के साथ वे अपनी मौसी माँ यानी गुंडिचा के मंदिर जाएंगे और स्वयं भक्त उनके रथ के पहिए को खींचते हुए उन्हें मौसी मां के घर पहुंचाएंगे।
बिलासपुर के रेलवे क्षेत्र स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर में भी रथ यात्रा को लेकर तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है । विशेष रथ तैयार कर उसका रंग रोगन किया जा रहा है। आयोजन समिति के के के बेहरा ने बताया कि इस वर्ष छेरा पहरा की परंपरा किसी राजनीतिक व्यक्तित्व से संपन्न ना कराते हुए समिति के सदस्यों द्वारा ही पूरी की जाएगी। वही यह उम्मीद भी की जा रही है कि हर बार की तरह इस बार भी हजारों श्रद्धालु रथ यात्रा का रस्सा खींचने, 4 जुलाई की दोपहर को श्री जगन्नाथ मंदिर पहुंचेंगे । जहां से उनकी रथयात्रा गांधी चौक तक भ्रमण करते हुए वापस उड़िया स्कूल में तैयार अस्थाई गुंडिचा मंदिर पहुंचेगी । जहां भगवान जगन्नाथ अपने भाई और बहन के साथ मौसी मां का आतिथ्य स्वीकार करेंगे।