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मंगलवार सुबह सुबह श्री जगन्नाथ मंदिर में भक्तों का रेला उमड़ पड़ा। इस दिन जगन्नाथ महाप्रभु पखवाड़े भर बाद अपने नेत्र खोलने वाले थे। मान्यता है कि महाप्रभु के स्वस्थ हो जाने के बाद मनाए जाने वाले नेत्र उत्सव में जगन्नाथ महाप्रभु के नेत्र खोलते ही जिस भक्तों पर उनकी पहली दृष्टि पड़ती है, उसका कल्याण हो जाता है । इसी मान्यता के साथ नेत्र उत्सव पर बड़ी संख्या में भक्त रेलवे क्षेत्र स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर पहुंचे थे। स्नान पूर्णिमा पर 108 कलश के जल से स्नान करने के पश्चात भगवान जगन्नाथ महाप्रभु, अग्रज बलभद्र और बहन सुभद्रा बीमार पड़ गए थे, इसलिए उन्हें गर्भ गृह से हटाकर अणसर भवन में लाया गया था, जहां 15 दिनों तक मंदिर के कपाट बंद कर उन्हें विशेष उपचार प्रदान किया गया। उपचार के तौर पर काढा, फल और सब्जी के रस पिलाए गए। 15 दिनों के उपचार के पश्चात भगवान जगन्नाथ स्वस्थ हो गए है,
इसलिए मंगलवार को उनके स्वस्थ होने पर नेत्र उत्सव मनाया गया। सुबह से ही यहां अनुष्ठानों का क्रम आरंभ हो गया। सभी देवी विग्रह का विशेष श्रृंगार कर उन्हें गर्भ गृह के सिंहासन पर विराजित किया गया। जहां उन्हें एक पखवाड़े बाद अन्न का भोग अर्पित किया गया । भगवान जगन्नाथ ,बलभद्र और देवी सुभद्रा को 56 प्रकार के भोग अर्पित किए गये। मान्यता है कि नेत्र उत्सव पर नेत्र खोलते ही प्रभु की निगाह जिस किसी भक्त पर सबसे पहले पड़ती है उसके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। इस विशेष कृपा की प्राप्ति के लिए सुबह से ही पहले दर्शन की आस में मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी थी। महाप्रभु के नव यौवन रूप का दर्शन नेत्र उत्सव पर भक्तों ने किया। पूरी तरह स्वस्थ होकर अपने दिव्य रूप का दर्शन जगन्नाथ महाप्रभु ने दिया ।एक पखवाड़े के एकांतवास के बाद जब महाप्रभु ने भक्तों को दर्शन दिया तो भक्तों के चेहरे खिल उठे । नेत्र उत्सव पर महा प्रभु के नव यौवन रूप के दर्शन के साथ उन्हें 56 प्रकार के विभिन्न भोग अर्पित किए गए । मंदिर के पुजारी गोविंद प्रसाद पाढ़ी ने बताया कि नेत्र उत्सव के अवसर पर महाप्रभु की विशेष पूजा-अर्चना की गई। हवन किया गया। उनका विशेष श्रृंगार किया गया और उन्हें अन्न युक्त 56 प्रकार के भोग अर्पित किए गए ।
परंपरा अनुसार नेत्र उत्सव पर ही मंदिर के शिखर का ध्वज भी बदला जाता है। मंगलवार 2 जुलाई को हर बार की तरह नेत्र उत्सव पर मंदिर के शिखर पर लगे ध्वज को भी बदला गया । वर्ष में केवल इसी एक दिन नया ध्वज मंदिर में लगता है। नेत्र उत्सव और नव यौवन रूप के दर्शन के बाद अब तैयारी रथ यात्रा की है । रथ द्वितीय पर जगन्नाथ महाप्रभु, अग्रज बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ स्वयं मंदिर से बाहर निकल कर भक्तों को दर्शन देने पहुंचेंगे। पखवाड़े भर बीमार रहने के बाद विशेष सेवा सुश्रुषा लेने अपनी मौसी मां गुंडिचा देवी के पास गुंडिचा मंदिर जायेंगे। भक्त स्वयं उनकी रथ का रस्सा खींच कर उन्हें मौसी मां के घर पहुंचाएंगे। इस बार 4 जुलाई को होने वाले रथयात्रा की भी तैयारी आरंभ कर दी गई है ।
उड़ीसा से आए कारीगर रथ को तैयार कर रहे हैं। भगवान महाप्रभु का रथ साल की विशेष लकड़ी से तैयार किया गया है। जिसका रंग रोगन किया जा रहा है। 4 जुलाई को गाजे-बाजे और धूमधाम के साथ बिलासपुर में भी रथयात्रा निकलेगी ,जो मंदिर से गांधी चौक और वापस मंदिर के बगल में अस्थाई बने गुंडिचा मंदिर में पहुंचेगी,जहां लगभग 8 दिनों तक महाप्रभु निवास करेंगे। इस दौरान यहां विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन होगा । इसी बीच 8 जुलाई को हेरा पंचमी मनाई जाएगी ।जहां प्राचीन कथा अनुसार महाप्रभु के मौसी मां के घर जाने से रुष्ट होकर महालक्ष्मी अपने दूतों को भेजकर प्रभु के रथ को भंग करवा देंगी । इसके बाद 12 जुलाई को बहुरा यात्रा के साथ जगन्नाथ महाप्रभु एक बार फिर वापस श्री मंदिर पहुंचेंगे। अपने भाई और बहन के साथ श्री क्षेत्र पहुंचकर महाप्रभु के दर्शन देने से पहले करीब सप्ताह भर यहां उत्सव का माहौल होगा , जिसकी तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है।