
जुगनू तंबोली
रतनपुर – बहुला चौथ निसंतान दम्पत्ति को संतान प्रदान करने, संतान के कष्टों को हरने वाला और धन-धान्य प्रदान करने वाला व्रत माना गया है। इस व्रत को करने से श्रीकृष्ण के आशीर्वाद से सभी लौकिक और परलौकिक सुख प्राप्त होते है। बहुला या संकष्टी चतुर्थी के दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले उठकर, इसके बाद स्नान और साफ वस्त्र धारण करती है। महिलाएं पूरा दिन निराहार व्रत रखकर शाम के समय गाय और बछड़े की पूजा करती हैं। शाम को पूजा में कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं जिन्हें भगवान गणेश और श्रीकृष्ण को अर्पित किया जाता है। इस भोग को बाद में गाय और बछड़े को खिला दिया जाता है। पूजा के बाद दाएं हाथ में चावल के दाने लेकर बहुला चौथ की कथा सुनी जाती है।
पौराणिक कथा
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार कृष्णजी की लीलाओं को देखने के लिए कामधेनु गाय ने बहुला के रूप में नन्द की गोशाला में प्रवेश किया। कृष्ण जी को यह गाय बहुत पसंद आई, वे हमेशा उसके साथ समय बिताते थे। बहुला का एक बछड़ा भी था, जब बहुला चरने के लिए जाती तब वो उसको बहुत याद करता था।एक बार जब बहुला चरने के लिए जंगल गई, चरते चरते वो बहुत आगे निकल गई, और एक शेर के पास जा पहुंची। शेर उसे देख खुश हो गया और अपना शिकार बनाने की सोचने लगा।बहुला डर गई, और उसे अपने बछड़े का ही ख्याल आ रहा था ।जैसे ही शेर उसकी ओर आगे बढ़ा, बहुला ने उससे बोला कि वो उसे अभी न खाए, घर में उसका बछड़ा भूखा है, उसे दूध पिलाकर वो वापस आ जाएगी, तब वो उसे अपना शिकार बना ले।शेर ने कहा कि मैं कैसे तुम्हारी इस बात पर विश्वास कर लूँ?
तब बहुला ने उसे विश्वास दिलाया और कसम खाई कि वो जरुर आएगी। बहुला वापस गौशाला जाकर बछड़े को दूध पिलाती है, और बहुत प्यार कर, उसे वहां छोड़, वापस जंगल में शेर के पास आ जाती है। शेर उसे देख हैरान हो जाता है। दरअसल ये शेर के रूप में कृष्ण होते है, जो बहुला की परीक्षा लेने आते है। कृष्ण अपने वास्तविक रूप में आ जाते है, और बहुला को कहते है कि मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हुआ, तुम परीक्षा में सफल रही। समस्त मानव जाति द्वारा सावन महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन तुम्हारी पूजा अर्चना की जाएगी और समस्त जाति तुमको गौमाता कहकर संबोधित करेगी व जो भी ये व्रत रखेगा उसे सुख, समृद्धि, धन, ऐश्वर्या व संतान की प्राप्ति होगी।