राष्ट्रीय

प्रोडक्ट नहीं विचारधारा बेच रही है मल्टीनेशनल कंपनियां, विरोध के बावजूद नहीं झुकी हिंदुस्तान युनिलीवर

सत्याग्रह डेस्क

सर्फ एक्सेल के विज्ञापन का जितना जम के विरोध हुआ, मुझे सोशल मीडिया का और कोई कैंपेन ऐसा याद नहीं आता. लोगों ने प्रोडक्ट का बहिष्कार किया, कंपनी का बहिष्कार किया, समान मंगवा कर लौटाए…पर HUL इसपर झुकती नहीं दिख रही. नुकसान हुआ है, शर्मिंदगी झेली है, बेइज्जत हुई है, पर एक बेशर्म जिद पर अड़ी हुई है.
एक कंपनी तो धंधा करने आती है. दुकानदार धंधे में पंगा नहीं चाहता. लेकिन HUL हमेशा अपने सारे कैंपेन में यह पंगा जैसी ढूंढती है, खोज खोज कर हमें चिढ़ाने वाले विज्ञापन लाती है. क्यों? क्या इन्हें धंधा नहीं करना है?
फिर से सोचें, इन्हें धंधा करना है. पर इनके लिए कौन सा धंधा ज्यादा बड़ा है?
ये कंपनियां सिर्फ साबुन तेल बेचने के धंधे में नहीं हैं. दुनिया में एक और धंधा इससे ज्यादा बड़ा है…लोगों के माइंड से खेलने का धन्धा, लोगों को अपनी सोच बेचने का धन्धा. लोगों की आत्माएं खरीदने का धन्धा.

दुनिया में पॉवर पैसे से बड़ी करेंसी है. पैसे की उपयोगिता है, कि वह पॉवर दिलाती है. क्योंकि आपसे नीचे के लोगों में पॉवर की वह भूख नहीं है, वे आपसे पैसे लेकर आपको अपने हिस्से का पॉवर सरेंडर कर देते हैं. पर जो लोग टॉप पर हैं, उन्हें पॉवर चाहिए. उनके लिए पैसा सिर्फ उसका माध्यम है.
यह साबुन तेल वाशिंग पाउडर बेचने का धन्धा मुख्य धन्धा नहीं है. यह एक साइड बिज़नेस है. यह भी जरूरी है, पर यह इसलिए जरूरी है क्योंकि इसी से उनके मेन बिज़नेस के लिए साधन जुटाए जाते हैं.

हमने हमेशा से जाना है कि ये बड़ी बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियाँ कैपिटलिस्ट हैं. यह एक झूठ है. अगर वे शुद्ध कैपिटलिस्ट हैं तो उन्हें अपने यहाँ चल रहा यह वामपंथी एजेंडा दिखाई कैसे नहीं दे रहा? वे वामपंथ को अपने कैपिटलिज्म के लिए खतरे की तरह क्यों नहीं देखते?

आप किसी भी MNC के लिए काम करते होंगे तो यह बात जरूर जानते होंगे. आप अपनी कंपनी में बहुत कुछ कर के बच सकते हैं. आप किसी टूर के फर्जी ट्रेवल और होटल बिल दे सकते हैं और लोग आँख मूँद लेंगे. आप अपने किसी पर्सनल काम के लिए घर से सिक-कॉल कर सकते हैं और कोई मेडिकल सर्टिफिकेट नहीं माँगेगा. आप किसी क्लायंट से कोई पर्सनल फ़ेवर ले सकते हैं…बात नहीं बढ़ेगी. पर आप एक काम करके नहीं बच सकते – आप कोई पॉलिटिकली इनकररेक्ट बात नहीं कह सकते. आप इस्लाम के खिलाफ कुछ नहीं बोल सकते. आप गे-लेस्बियन की आलोचना नहीं कर सकते. आप फेमिनिज्म के बारे में कुछ बोल कर नहीं निकल सकते. ऑफिस में तो नहीं ही, सोशल मीडिया पर भी नहीं. अगर किसी ने इसकी शिकायत कर दी तो बहुत भारी पड़ेगा.

कंपनियाँ वामपंथ की स्पॉन्सर हैं. अपने फायदे नुकसान से आगे जाकर ये वामपंथियों को पालती पोसती हैं. बिल गेट्स जैसे लोग इस एजेंडे पर अरबों खर्च करते हैं. भारत में भी इनका करोड़ों का बजट होता है जो कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी को समर्पित होता है, जो मूलतः पिछले दरवाजे से वामपंथियों को दी हुई घूस है. घूस ताकतवर को ही दी जाती है, और इन्हें वामियों की ताकत पता है.

एक कदम और आगे…लोग ताकतवर को जॉइन करना चाहते हैं. तो इन कंपनियों ने वामपंथियों को जॉइन कर रखा है. बल्कि अब यह फर्क खत्म हो गया है कि किसने किसे जॉइन किया है. ताकत की एक अलग ही दुकान है, पॉवर सबसे बड़ा बिज़नेस है. और इस बिज़नेस में इन कंपनियों की वामपंथियों से पार्टनरशिप है. साबुन तेल का बिजनेस कुछ भी नहीं है इसके सामने.

इसलिए HUL अपने ऐड चलाएगी, आगे भी चलाएगी. और इस कैंपेन को सबसे अच्छे कैंपेन का अवार्ड भी मिलेगा.

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