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अंडा विवाद में सरकार बैकफुट पर, मंगलवार को जारी किए नए दिशा निर्देश

डेस्क

संडे हो या मंडे, रोज खाएं अंडे। यह विज्ञापन भले ही देश भर में मशहूर हुआ हो लेकिन छत्तीसगढ़ में अंडे को लेकर इन दिनों हंगामा मचा हुआ है। सड़क से लेकर विधानसभा तक इसी मुद्दे पर बहस जारी है। सोमवार को विधानसभा में अंडे पर काफी हंगामा मचा। जिसके बाद आखिरकार स्कूल शिक्षा विभाग को नए आदेश और स्पष्टीकरण जारी करने पड़े।

सोमवार को विधान सभा में बोलते हुए विधायक धर्मजीत सिंह ने कहा कि आज स्कूलों में अंडा खिलाया जा रहा है कल बीफ खिलाया जाएगा । उन्होंने कहां कि कबीर और घासीदास की धरती पर इस तरह अंडा नहीं परोसा जाना चाहिए। वही उनका साथ देते हुए शिवरतन ने कहा कि प्रदेश में करीब 35 लाख कबीरपंथी और 25 लाख सतनामी समाज के लोग रहते हैं। मध्यान्ह भोजन में अंडा परोसे जाने से उनकी भावनाएं आहत होंगी। यही कारण है कि अगले ही दिन छत्तीसगढ़ शासन के स्कूल शिक्षा विभाग को स्पष्टीकरण जारी करना पड़ा । मंगलवार को जारी आदेश के तहत सभी स्कूलों के लिए दिशा निर्देश तय किए गए हैं। मध्यान्ह भोजन के तहत बच्चों को पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए मध्यान भोजन के साथ सप्ताह में कम से कम 2 दिन अंडा दूध या अन्य पोषक सामग्री देने की बात कही गई है।

वहीं स्कूलों को निर्देश दिया गया है कि अंडा परोसने से पहले और परोसने के दौरान विशेष ध्यान रखा जाए। शाला समिति और पालकों की बैठक आयोजित करने की बात भी कही गई है ताकि ऐसे छात्र छात्राओं की पहचान हो सके जो भोजन में अंडा ग्रहण नहीं करना चाहते ।

शाकाहारी बच्चों की भावनाएं आहत न हो इसके लिए मध्यान भोजन तैयार करने के दौरान अलग से अंडे उबालने और पकाने की व्यवस्था करने के भी निर्देश दिए गए हैं। यह भी कहा गया है कि जो छात्र अंडा नहीं खाते उन्हें अलग पंक्ति में बिठाकर भोजन परोसा जाए। मंगलवार को जारी निर्देश में शालाओं को यह भी निर्देशित किया गया है कि जो बच्चे अंडा नहीं ग्रहण करेंगे उन्हें अन्य प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ जैसे सुगंधित सोया दूध, सुगंधित मिल्क, प्रोटीन क्रंच, फोर्टीफाइड बिस्किट, फोर्टीफाइड सोया बड़ी, सोया मूंगफली चिक्की, सोया पापड़, फोर्टीफाइड दाल इत्यादि विकल्प के तौर पर परोसा जाए । वही साफ तौर पर कहा गया है कि अगर पालकों की बैठक में मध्यान्ह भोजन में अंडा नहीं परोसे जाने पर आम सहमति बनती है तो फिर ऐसे स्कूलों में मध्यान्ह भोजन के दौरान अंडा न परोसा जाए, बल्कि जो बच्चे अंडा खाना चाहे उन्हें उनके घर अंडा पहुंचाया जाए।

जाहिर है प्रदेश भर में हो रहे विरोध प्रदर्शन के बाद सरकार बैकफुट पर नजर आ रही है । कबीरपंथी और सतनामी समाज द्वारा विरोध जताए जाने के बाद ही सरकार को कदम वापस लेना पड़ा है, लेकिन यह भी सच है कि विरोध करने वालों में से अधिकांश लोगों के बच्चे सरकारी स्कूलों में जाते ही नहीं और विरोध करने वालों में ऐसे लोग भी शामिल हैं जिनके बच्चे बड़े आराम से घर और बाहर अंडा खाते हैं। मध्यान भोजन के दौरान उबला अंडा देने पर ही चर्चा हो रही है। आमलेट की बात अभी तक नहीं कहीं गयी है। इसे भी विकल्प के तौर पर आजमाया जा सकता है। मुमकिन है जब अंडा परोसने का चलन चल पड़ेगा तब इसे लेकर जारी गतिरोध भी स्वयं समाप्त हो जाए। अन्य प्रदेशों में मध्यान भोजन में अंडे आसानी से परोसे जा रहे हैं। छत्तीसगढ़ में हो रहे विरोध और राजनीति के चलते बच्चों के पोषण पर संकट के बादल गहराते जा रहे हैं। एक सच यह भी है कि अधिकांश बच्चे अंडे खाना चाहते हैं, लेकिन धार्मिक और सामाजिक प्रतिबंध की बेड़ी, उनके कदमों में बांधी जा रही है।

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