
सुबह 8:00 से लेकर दोपहर 2:00 बजे तक सभी ओपीडी सेवाएं बंद रखी गई। ओपीडी बंद रहने से मरीजों को काफी परेशानियों का करना पड़ा सामना
बिलासपुर प्रवीर भट्टाचार्य
एक तरफ अस्पतालों में चिकित्सा सेवाएं लगातार महंगी हो रही है और भारी भरकम बिल चुकाने के बाद जब मरीजों उनके परिजनों को मुंह मांगी सेवाएं नहीं मिलती तो फिर वह अस्पताल में हंगामा मचाना शुरू कर देते हैं वे शायद भूल जाते है कि आखिर डॉक्टर भी इंसान हैं, भगवान तो नहीं। लगभग सभी अस्पतालो और चिकित्सकों की कोशिश यही होती है की मरीज की जान बचाई जाये और उसका इलाज सही ढंग से हो ।हर मरीज ठीक हो जाए और किसी की भी मौत अस्पताल में ना हो ऐसा मुमकिन नहीं। लेकिन जब जब ऐसा प्रतिकूल परिणाम सामने होता है तो मरीज के परिजन भड़क कर अस्पताल में हिंसक तोड़फोड़ शुरू कर देते हैं। ऐसे मौकों पर अस्पताल के कर्मचारियों और कभी कभी चिकित्सकों से भी मरीज के परिजन मारपीट करने से बाज नहीं आते
इस तरह की घटनाओं कि इन दिनों बाढ़ सी आने लगी है। लगातार सरकारी और निजी चिकित्सालय में इस तरह की घटनाओं से अब चिकित्सक अस्पताल का संचालन करने में खुद को असमर्थ पा रहे हैं। हालांकि ऐसे मामलों से निपटने मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट लागू है लेकिन इसका प्रभावी इस्तेमाल और क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है।इसी मुद्दे पर अपना विरोध दर्ज कराने बुधवार को आईएमए के आह्वान पर मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट के प्रभावी क्रियान्वयन और दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की मांग को लेकर सुबह 8:00 से लेकर दोपहर 2:00 बजे तक सभी ओपीडी सेवाएं बंद रखी गई। ओपीडी बंद रहने से हालांकि मरीजों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। लेकिन चिकित्सकों के एक धड़े ने इसे अपने अधिकारों की लड़ाई बता कर मरीजों को हुई असुविधा के लिए खेद जताई है ।इस मुद्दे पर सीएमडी चौक स्थित आइएमए में भवन में एक बैठक रखी गई जहां इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पदाधिकारियों और सदस्य चिकित्सकों ने अपनी बातें रखी। आईएमए के स्टेट प्रेसिडेंट डॉ हेमंत चटर्जी ने बताया कि इन दिनों शासकीय एवं गैस शासकीय अस्पतालों में हिंसक तोड़फोड़ की वारदातों में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। इस मामले में पुलिस और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को अवगत कराने के बावजूद उनसे खास मदद नहीं मिलती मिल सकी है। प्रशासनिक उदासीनता के खिलाफ यह आंदोलन किया गया क्योंकि इस तरह की घटनाओं से कर्मचारियों और चिकित्सकों को जान माल का नुकसान उठाना पड़ रहा है। पूरा चिकित्सक जगत भय के वातावरण में काम करने को मजबूर है । इससे स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने में भी उन्हें असुविधा हो रही है लिहाजा मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट को पूरी तरह लागू कर ऐसे शरारती तत्वों पर नकेल कसने की जरूरत है।
30 जनवरी को सुबह 8:00 से दोपहर 2:00 बजे तक बिलासपुर के सभी अस्पतालों की भी ओपीडी सेवाएं बंद रही ।हालांकि अस्पतालों में भर्ती मरीजों और आपातकालीन मरीजों के हितों का ख्याल रखते हुए इन सेवाओं को अस्पतालो द्वारा प्रदान किया गया। इलाज के दौरान चिकित्सक और मरीज के साथ उनके परिजनों का एक गहरा नाता जुड़ जाता है जाहिर है मरीज के परिजनों की अपेक्षाएं हर हाल में मरीज के ठीक होने की होती है और इसमें जरा सी चूक से वे आपा खोने लगते हैं लेकिन बार-बार उनके द्वारा ऐसा किए जाने का दुष्परिणाम उन मरीजों को भी भोगना पड़ रहा है जो आज भी डॉक्टर को भगवान से कम नहीं मानते ।