छत्तीसगढ़

बप्पा के दो मासूम मुस्लमान भक्तो की ऐसी भक्ति, कि बारिश और तूफान में भी वे उन्हें छोड़कर जाने को नहीं थे तैयार , जानिए क्यों

प्रवीर भट्टाचार्य

धर्म के नाम पर एक दूसरे की जान लेने को प्यासे लोग भले ही खुद को बहुत बड़ा धार्मिक और मजहबी समझे लेकिन धर्म की सच्चाई और असली भक्ति क्या होती है यह उन दो मासूम बच्चों से सीखी जा सकती है जो पिछले कुछ दिनों से एक बांस और तंबू, साड़ी से बनाएं छोटे से पंडाल में गणपति की आराधना कर रहे थे। लगातार हो रही भारी बारिश के बावजूद भी दोनों बच्चे बप्पा को छोड़कर जाने को तैयार नहीं थे। आसपास के लोगों को लगा कि बच्चों पर कोई मुसीबत न टूट पड़े ,इसलिए वे उनकी खबर लेने जुटे ।जब बच्चों से उनका नाम पूछा गया तो लोगों के पैरों तले जमीन खिसक गई ।भगवान गणेश की ऐसी अलौकिक आराधना में लीन और समर्पित दोनों बच्चे मुसलमान निकले। लोगों को हैरानी हुई कि आखिर दो मुस्लिम बच्चे क्यों और किस लिए इस तरह से कष्ट सहकर भगवान गणेश की आराधना कर रहे हैं। पता चला इन दोनों मासूमों के दिलों में भी एक ख्वाहिश थी कि वे भी औरों की तरह गणपति की स्थापना करेंगे और उसी तरह उनकी पूजा-अर्चना करेंगे जैसा कि उन्होंने अपने आसपास अपने साथियों, हिंदुओं को करते देखा था। लेकिन उन्हें पता था कि ना तो उनके घरवाले उन्हें ऐसा करने की इजाजत देंगे और ना ही वह हिंदू जिनके आराध्य आराध्य की आराधना वे करना चाहते हैं। उनका दोष उनकी पहचान थी। इसीलिए अपनी इस पहचान से पिंड छुड़ाते हुए दोनों मासूम बच्चे एक कपड़े में 10 दिनों के लिए घर छोड़कर गणपति बप्पा की आराधना का संकल्प ले निकल पड़े। दूसरे वार्ड में पहुंचकर दोनों बच्चों ने गणेश के लिए चंदा मांगा और उसी पैसे से उन्होंने सीतामढ़ी इलाके से ढाई सौ रुपए में बप्पा की मूर्ति खरीदी। बचपन से घर में पूजा होते कभी देखा नहीं था, लेकिन छुप-छुपकर कर गणेश पंडाल में जो कुछ देखा था वह सामग्रियां भी इन लोगों ने जुटाई। न मंत्र आते थे न पूजा की रीती- विधि । फिर भी इन दो मासूमों से जो करते बना, जो समझ में आया, वैसे ही उन्होंने बप्पा की पूजा अर्चना की । इनके समर्पण के आगे तो बड़े-बड़े भक्तों की भी कोई भी बिसात नहीं। दोनों की भक्ति इस कदर कि वे बप्पा को छोड़कर 1 मिनट भी कहीं जाने को तैयार नहीं थे।

बच्चों की लगन को देखकर आसपास के लोगों ने भी उन्हें कुछ कुछ चीजें उपलब्ध करा दी । उन्हीं के द्वारा उपलब्ध बांस त्रिपाल और साड़ियों की मदद से छोटा सा पंडाल बनाया। भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित की और पूजा अर्चना करने लगे । लेकिन इसी दौरान तेज बारिश होने लगी तो दोनों बच्चे पूरी रात अकेले ही पंडाल में ही डटे रहे। आसपास के लोगों को लगा कि बच्चे मुसीबत में है तो वे उनका हाल जानने पहुंचे तो पता चला कि दोनों बच्चे मुस्लिम है। लेकिन उनका समर्पण देखकर सब उनके आगे नतमस्तक हो गए। ऐसी भक्ति तो उन लोगों ने इससे पहले कभी नहीं देखी थी । जब उनसे उनके घर का पता पूछा गया तो वे डर गए। उन्हें लगा कि उनका मकसद अधूरा रह जाएगा । इसलिए उन्होंने बिलासपुर का नकली पता बता दिया। लेकिन जब उनसे प्यार से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि वे कोरबा के शारदा विहार कुआं भाटा के पास रहने वाले हैं। बच्चों को आसपास के लोगों ने अपने घर ले जाना चाहा, लेकिन वे बप्पा को छोड़कर जाने को तैयार ही नहीं थे । तब लोगों ने समझाया कि वे स्वयं बप्पा को अपने घर में स्थापित करेंगे , तब कहीं जाकर दोनों बच्चे उनके साथ जाने को तैयार हुए। इधर उनके परिजनों को उनकी सूचना दी गई। तो वे भी हैरान रह गए। उन्होंने बताया कि इससे पहले इन दोनों बच्चों ने ऐसा कभी नहीं किया था। पता नहीं बप्पा का क्या जादू था कि दोनों बच्चों ने इतना बड़ा कदम उठा लिया ।
धर्म के नाम पर एक दूसरे की जान लेने को उतारू लोगों को इन दोनों मासूम बच्चों ने बिना कुछ कहे, केवल अपने कर्म से वह अनमोल सीख दे दी है, जो किसी धार्मिक किताबों से भी हासिल नहीं हो पायी है। देशभर में गणेश भगवान की पूजा की जा रही है , लेकिन ऐसी भक्ति शायद ही कहीं और दिखी होगी। भगवान गणेश जी शायद ऐसे भक्तों को पाकर कैलाश में निहाल हो रहे होंगे। सच ही है, भगवान तो इस दुनिया में इंसान पैदा करते हैं । हम ही हैं जो उन पर धर्म और मजहब का ठप्पा लगा देते हैं। शुक्र है कि इन मासूमों के दिल पर अभी तक ऐसा कोई ठप्पा नहीं लगा और उनके लिए हिंदू के देवता भी वैसे ही पूजनीय है जैसे हिंदुओं के लिए । काश बड़ों में भी ऐसी ही भावना होती तो फिर यह देश कितना खुशहाल होता। शायद इसीलिए बच्चों को भगवान का रूप कहते हैं और भगवान के इसी रूप के लोगों ने साक्षात दर्शन भी कर लिए।

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