आलोक
गुरुवार को बिलासपुर रेलवे स्टेशन में अजीबोगरीब स्थिति नजर आई । एक मानसिक रोगी के पीछे आरपीएफ के जवान हलाकान होते नजर आएं। अधिकांश रेलवे स्टेशनों की तरह बिलासपुर रेलवे स्टेशन में भी कई मानसिक रोगी अपना ठिकाना बनाए रह रहे हैं ।दिमागी बीमारी के बाद किसी भी ट्रेन से भटक कर यहां पहुंचे मानसिक रोगियों का समुचित इलाज नहीं होने और स्वास्थ्य विभाग एवं एनजीओ द्वारा भी उनकी मदद ना किए जाने की वजह से मानसिक रोगी बिलासपुर स्टेशन को ही अपना घर बना चुके हैं । गुरूवार को ऐसे ही एक मनोरोगी की वजह से आरपीएफ को परेशान होना पड़ा। मनोरोगी के साथ एक बच्चा भी था, शायद वो उसका बेटा होगा। पहले तो मनोरोगी अपने बेटे के साथ एक कोयले से भरी मालगाड़ी के वैगन पर चढ़कर बैठ गया। उसे ऐसा करते देख यात्रियों ने आरपीएफ को इसकी सूचना दी। जिसके बाद आरपीएफ ने उसे मालगाड़ी से उतारा, लेकिन थोड़ी देर बाद बिलासपुर रेलवे स्टेशन पहुंची राजधानी एक्सप्रेस के नीचे वही मानसिक रोगी अपने बेटे के साथ घुस कर बैठ गया।
जाहिर सी बात है कि राजधानी एक्सप्रेस के चलने से दोनों की मौत हो सकती थी, लेकिन उन्हें वहां से निकालना आसान काम भी नहीं था । बड़ी मुश्किल से आरपीएफ के जवानों ने किसी तरह दोनों को बाहर निकाला। तब जाकर राजधानी एक्सप्रेस बिलासपुर से रवाना हो पाई और आरपीएफ ने राहत की साँस ली। गुरुवार को भले ही इन्हें आरपीएफ बाहर निकालने में कामयाब हुई हो, लेकिन बिलासपुर रेलवे स्टेशन पर ऐसे ही अन्य कई और मानसिक रोगी मौजूद हैं , जिनके द्वारा भी ,कभी भी ऐसी हरकत की जा सकती। सेंदरी में मानसिक रोग अस्पताल खुलने के बाद कोर्ट द्वारा भी सड़क और स्टेशन पर भटकने वाले मनोरोगिओ को एनजीओ की मदद से अस्पताल पहुंचाने के निर्देश दिए गए थे ,लेकिन उसका पालन नहीं हो पाया । जिस वजह से रेलवे स्टेशन पर कई मनोरोगियों को घूमते फिरते आसानी से देखा जा सकता है । ऐसे लोग खुद के लिए और दूसरों के लिए भी कभी भी खतरा बन सकते हैं। इसलिए आरपीएफ और रेलवे को इस संबंध में कोई ठोस निर्णय लेने की जरूरत है।