
डेस्क

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की महत्वाकांक्षी गोठान परियोजना का अधिकारियों ने कबाड़ बना कर रख दिया है। मुख्यमंत्री की एनजीबीटी योजना में गरुआ यानी गाय भी शामिल है लेकिन गाय को लेकर प्रशासनिक संजीदगी का अभाव है कि पूरा शहर गोठान बना हुआ है। बिलासपुर की सड़कें गोठान नजर आती है। ऐसी कोई सड़क नहीं जहां गाय ना हो लेकिन गोठान से गाय गायब है। बिलासपुर में भी कुछ महीने पहले मोपका में शहरी गोठान की शुरुआत की गई लेकिन दिखावे के इस कोशिश में हर तरफ बदहाली बिखरी हुई है। बमुश्किल यहां 10 गाय भी वर्तमान में मौजूद नहीं हैं। जिनमें से तीन मरणासन्न स्थिति में है। इनमे से एक गाय एक्सीडेंट के बाद लाई गई थी जिसका बचना मुश्किल लग रहा है। यहां हर तरफ गंदगी पसरी हुई है। गायों के पीने के पानी का कुंड इतना गंदा है जिसे देखकर ही किसी को उल्टी आ जाए।

गायों को ठीक से चारा पानी भी नहीं दिया जा रहा। गायों की देखभाल के लिए जिन कर्मचारियों को रखा गया है उनकी लापरवाही का आलम स्पष्ट देखा जा सकता है। पूरा गोठान गंदगी की ढेर पर बसा हुआ लग रहा है ।हर तरफ गोबर और बदबू फैली हुई है। ऐसे में यहां पहुंचने वाली गाय बीमार ना हो तो और क्या हो। दिखावे के लिए कुछ गायों को पकड़कर गोठान लाया जरूर जाता है लेकिन जल्द ही वे यहां से भाग जाती है। एक दिन पहले ही लोहर्सी के गोठन में 22 गायों की मौत का मामला सामने आया है। बिलासपुर मोपका स्थित गोठान की स्थिति भी कुछ अलग नहीं है, लेकिन नगर निगम आयुक्त प्रभाकर पांडे इस बात को मानने को ही तैयार नहीं ।उनका दावा है कि यहां सब कुछ व्यवस्थित है और नियमित रूप से गाय पकड़ी भी जा रही है। वही चारा पानी और इलाज की कमी से किसी गाय की मौत नहीं हो रही।

सच तो यह है कि यहां इलाज की सुविधा उपलब्ध ही नहीं है। दिखावे के लिए पशु चिकित्सक कभी कभार आते हैं, इसलिए जो भी गाय यहां बीमार आती है ,उनकी मौत अवश्यंभावी है। फिर भी अधिकारियों के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही। मुख्यमंत्री की योजना की ख्याति की वजह से राजस्थान के मुख्यमंत्री प्रदेश के गोठान देखने आना चाहते हैं ।जाहिर है उन्हें ऐसे गोठान ले जाया जाएगा जिसे पहले से संवार भी दिया जाएगा। जबकि शेष गोठान की स्थिति कमोबेश ऐसी ही रहेगी। हिंदू धर्म में गाय को मां कहा जाता है। गाय की हर तरफ पूजा होती है और असल में गाय के साथ किस तरह का बर्ताव सरकारी मशीनरी कर रही है, इसे इनको गोठनों में स्पष्ट देखा जा सकता है ।अगर यही हाल रहा तो फिर ना तो गाय सड़कों पर सुरक्षित रहेगी और ना ही गोठन में। गाय पर राजनीति करने वालों को समझना होगा कि अगर गाय ना बची तो फिर उनकी राजनीति भी कब तक बचेगी ।
