
मुमकिन है रमेश बैस इसी दौर से गुजरे हो, लेकिन उन्होंने शाम होने से पहले घर वापसी कर ली, इसलिए पार्टी भी शायद उन्हें भुला ना माने।
ठा. उदय सिंह
पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर यह खबर तेजी से फैली कि रायपुर सांसद और भाजपा नेता रमेश बैस टिकट कटने से नाराज होकर कांग्रेस में जा सकते हैं। उनके कांग्रेस के टिकट पर रायपुर से लोकसभा चुनाव लड़ने की अटकलें तेज हो गई थी ।इसी बीच शनिवार को उन्होंने सोशल मीडिया पर ही एक लंबा चौड़ा पत्र लिखकर इन खबरों को सिरे से खारिज किया। भारतीय राजनीति में वंशवाद और एकाधिकार का लगभग सभी विरोध करते हैं, मगर हकीकत यह है कि जब भी कोई नेता एक या दो चुनाव जीत जाते हैं तो उन्हें लगने लगता है कि उस पद पर उनका जन्म सिद्ध अधिकार है। और हर बार उन्हीं को अवसर मिलना चाहिए। जब कभी भी उन्हें अवसर नहीं मिलता तो फिर भी अपना स्वार्थ पूरा करने उस पार्टी में भी जाने से गुरेज नहीं करते जिनके खिलाफ पूरी जिंदगी लड़ाई लड़ी है । सभी प्रमुख राजनीतिक दलों में ऐसे नेताओं की कोई कमी नहीं। इस लोकसभा चुनाव में एक पार्टी छोड़कर दूसरे पार्टी में जाने का सिलसिला चल रहा है। मौकापरस्त और सुविधा की राजनीति करने वाले नेता अपने लिए संभावनाएं तलाश रहे हैं। देश सेवा के नाम पर अपनी और अपनों की सेवा करना ही जिन नेताओं के लिए सर्वोपरि हो उनके लिए ऐसा करना आश्चर्यजनक भी नहीं है । भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव में नया प्रयोग करते हुए सभी 11 लोकसभा सीटों पर नए प्रत्याशी उतारने का दांव खेला। इससे मौजूदा सांसदों का भी टिकट कट गया। रायपुर सांसद और इसमें अटल सरकार में मंत्री रहे रमेश बैस भी शामिल थे। इसके बाद से यह खबरें तेजी से फैली कि वे कांग्रेस में जाने वाले हैं । इन खबरों को मिथ्या बताते हुए उन्होंने इसे पार्टी को कमजोर करने की साजिश करार दिया है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि उनका टिकट कटने से उनके समर्थकों में रोष है। लेकिन यह भी मानते हैं कि उन्हें जो कुछ भी हासिल हुआ वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ,जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी ने ही दिया है। वे आज भी खुद को संगठन का सिपाही बता रहे हैं। उन्हें इस मौके पर ब्राम्हण पारा से पार्षद चुनाव जीतने से लेकर मंदिर हसौद के विधायक बनने और रायपुर का सांसद बनने तक का सफर याद आ रहा है। रमेश बैस ने लिखा है कि भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें परिवार के सदस्य की तरह स्नेह दिया, नाम, सम्मान ,पद, प्रतिष्ठा सब कुछ दिया। वे मानते हैं, अगर वे भारतीय जनता पार्टी में नहीं होते तो शायद इतनी लंबी पारी नहीं खेल पाते । भावुक पत्र लिखकर उन्होंने साफ कर दिया है कि वे हमेशा भारतीय जनता पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता बनकर रहेंगे और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर उन्हें पूरा भरोसा है । वैसे राजनीतिक विश्लेषक पत्र की टाइमिंग को लेकर काफी कुछ कह रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से यह खबर अखबारों और सोशल मीडिया में सुर्खियां बन रही थी, लेकिन उस वक्त रमेश बैस खामोश रहे। शायद इन खबरों पर उनकी भी मौन सहमति थी। लेकिन जब शुक्रवार देर रात रायपुर से महापौर प्रमोद दुबे कांग्रेस के प्रत्याशी घोषित हो गए तब उन्हें घर बचाने की याद आई और यह पत्र लिखकर उन्होंने अपनी सफाई दी। शायद रमेश बैस को भी यह उम्मीद थी कि कांग्रेस उन्हें रायपुर से अपना प्रत्याशी बनाएगी। यह उम्मीद पूरी ना होने पर ही उन्होंने जो कुछ पास है वह भी हाथ से ना छूट जाए इस कोशिश के तहत अपना रुख स्पष्ट किया। बेहतर होता कि ऐसा वे पहले दिन करते या फिर कम से कम कांग्रेस के प्रत्याशी घोषित होने के पहले कर देते। भारतीय जनता पार्टी में असंतुष्टों की कोई कमी नहीं। राजनीति अब सेवा का पेशा नहीं रह गया है। इसमें सत्ता और पद का लोभ हावी हो चुका है, इसलिए पद जाने की सभी नेताओं में तिलमिलाहट नजर आती है । मुमकिन है रमेश बैस इसी दौर से गुजरे हो, लेकिन उन्होंने शाम होने से पहले घर वापसी कर ली, इसलिए पार्टी भी शायद उन्हें भुला ना माने।