
भुवनेश्वर बंजारे

बिलासपुर-यूं तो नवजात शिशु के घर आने से घर खुशियों से भर जाता है, इनके स्वागत के लिए तरह तरह की तैयारियां की जाती है। लेकिन हमारे समाज में ही कुछ लोग ऐसे भी है जो इन मासूमों की जिंदगी शुरू होने के पहले ही खत्म करने की कोशिश करते है। कोई इन बच्चों को कचड़े में फेंक देता है तो कोई नाली में, जिनमें से अधिकांश बच्चे प्रतिकूल परिस्थितियों में अपनी आंख हमेशा के लिए बंद कर लेते है। जिस तरह डूबते को तिनके का सहारा काफी होता है, वैसे ही समाज मे भी कुछ ऐसे व्यक्तित्व वाले लोग है, जो ऐसे दुधमुंहे बच्चो को देखते ही सहयोग करने तत्पर रहते है, जिनके द्वारा ऐसे नवजात शिशुओं को किसी भी माध्यम से हॉस्पिटल पहुँचाया जाता है, ऐसे में उनके जीने की संभावना बढ़ जाती है। ऐसे ही कुछ बेसहारा बच्चो को जीवन देने का काम सिम्स प्रबंधन ने किया है। विगत वर्षों में भले ही कई मामले में सिम्स प्रबंधन सवालो के कटघरे में खड़ा हो। लेकिन इसके विपरीत सिम्स के एनआईसीयू वार्ड में दो दर्जन से भी अधिक नवजात शिशुओं की जान बचाई गई है, जो किसी उपलब्धि से कम नही है।
डॉक्टर, स्टॉफ के अथक प्रयासों से बचाई गई 27 जानें

विगत 6 वर्षों में सिम्स हॉस्पिटल में अलग अलग माध्यमों से 30 अनाश्रित बच्चो को एडमिट कराया गया था। जिनका इलाज एनआईसीयू में चल रहा था। बेहतर देखभाल और इलाज के बाद 27 नवजात शिशुओं की जान बचाई गई, जो आज ममता के साये में पल रहे है।
इलाज में इन सब की भूमिका अहम..
जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे सभी नौनिहालों को सकुशल आश्रय दिलाने में सिम्स के शिशु विभाग के विभाग अध्यक्ष डॉ राकेश नहरेल,डॉ समीर जैन,इंचार्ज पिंकी दास के साथ सभी नर्सों ने पूरा प्रयास किया है, जिसके फलस्वरूप आज सभी बच्चे अपना जीवन जी रहे है।