
विधायक शैलेश पांडे भोपाल के हैं, लिहाजा उनके लिए छत्तीसगढ़ी व्यंजन और उनका स्वाद अपरिचित है लेकिन लंबे वक्त से बिलासपुर में रहने की वजह से वे भी पारंपरिक छत्तीसगढ़ी व्यंजनों के प्रशंसक बन चुके हैं

बिलासपुर प्रवीर भट्टाचार्य
कहते हैं किसी के भी दिल का रास्ता उसके पेट से होकर गुजरता है। जिक्र भले ही पेट का हो ,लेकिन असली तसल्ली तो स्वाद से ही हासिल होती है, और स्वाद अगर स्थानीय हो तो फिर क्या कहने ।हर प्रांत के अपने व्यंजन है और व्यंजनों का अपना बिल्कुल अलहदा स्वाद होता है। बचपन से घर में मां दादी के हाथों के बने उन व्यंजनों की बराबरी फाइव स्टार होटल के मेनू कार्ड में छपे अटपटे नाम वाले व्यंजन भला क्या कर पाएंगे
छत्तीसगढ़ एक छोटा सा प्रांत है, लेकिन इसकी अपनी अलग सी तासीर है और यहां का स्वाद बिल्कुल जुदा है। छत्तीसगढ़ी पारंपरिक पकवान सदियों से घरों में बनाए और खिलाए जाते हैं। सुदूर ग्रामीण अंचलों से लेकर शहर में भी इन व्यंजनों के मुरीद भरे पड़े हैं। लेकिन शहरी व्यस्तताओं के बीच अब रोज इन पकवानो को न तो बनाना संभव हो पा रहा हैं और ना ही उनका स्वाद अब रोज हासिल होना सहज है । यह भले ही राहत की बात है कि छत्तीसगढ़ी पारंपरिक व्यंजनों को उपलब्ध बाजार की वजह से कुछ आधुनिक रेस्तरां खुल चुके हैं ,जहां अब छत्तीसगढ़ी पारंपरिक व्यंजन भी उपलब्ध है,

लेकिन आज भी जरूरत है हमारे प्रदेश के पारंपरिक व्यंजन को प्रमोट करने की, और यही कोशिश इस शनिवार को छत्तीसगढ़ प्रांतीय अखंड ब्राह्मण समाज के नारी प्रकोष्ठ द्वारा की गई। मौका था छत्तीसगढ़ी व्यंजन मेले का ,जिसे बृहस्पति बाजार के पास स्थित मिशन स्कूल मैदान में आयोजित किया गया। यहां युवा और अनुभवी, दोनों का संगम देखा गया। परंपराओं में जिन व्यंजनों को बनाना सिखा उन्हीं व्यंजनों के स्वाद का जादू यहां भी चलाया गया ।एक ही स्थान पर ढेरों छत्तीसगढ़ी व्यंजन की वैरायटी देखकर भला किसके मुंह में पानी ना आया होगा। स्टॉल में जिधर देखें उधर एक से बढ़कर एक मनभावन व्यंजन तैयार हो रहे थे और सर्व किए जा रहे थे

जिन व्यंजनों ने यहां स्वाद का जादू जगाया उनमें फरा, अंगाकर रोटी, लाई बडा, दूध फरा,खुरमी, ठेठरी,चीला, चौसेला,आरसी, राजगीर लाडू, केला रबड़ी, लाडवा, पपची जैसे ना जाने कितने ऐसे व्यंजन थे जिनका स्वाद चखे लोगों को अरसा हो चुका था ,वही बहुत सारे ऐसे लोग भी थे जिन्होंने पहली बार छत्तीसगढ़ के इन पारंपरिक व्यंजनों का स्वाद चखा और वाह वाह कर उठे। अखंड ब्राह्मण समाज नारी प्रकोष्ठ की महिलाओं का मानना है कि देशभर में अलग अलग प्रांत के व्यंजन खूब प्रसिद्ध है, चाहे वह दक्षिण भारत के इडली डोसा हो या फिर पंजाब के छोले भटूरे, गुजरात का खमन ढोकला हो या फिर बंगाल के रसगुल्ले। उस तुलना में छत्तीसगढ़ के व्यंजनों को वह ख्याति नहीं हासिल हो पाई है जिसका कि वह हकदार है ।असल में छत्तीसगढ़ी व्यंजनों में तड़क-भड़क और आडंबर नहीं है। बिल्कुल साधारण, घर में उपलब्ध सामग्री से बनने वाले व्यंजन किफायती भी है और कम खर्च में तैयार होते हैं। शायद इसी वजह से इसे वह गौरव नहीं हासिल हो पाया जो होना चाहिए था। इसीलिए छत्तीसगढ़ी व्यंजनों को राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने की कोशिश नारी प्रकोष्ठ कर रहा है। महिलाओं के उत्साहवर्धन के लिए यहाँ बिलासपुर के विधायक शैलेश पांडे भी पहुंचे ,जिनका आत्मीय स्वागत किया गया ।उन्होंने भी स्टॉल में मौजूद अलग अलग व्यंजनों का स्वाद चखा और दिल खोलकर तारीफ की। विधायक शैलेश पांडे भोपाल के हैं, लिहाजा उनके लिए छत्तीसगढ़ी व्यंजन और उनका स्वाद अपरिचित है लेकिन लंबे वक्त से बिलासपुर में रहने की वजह से वे भी पारंपरिक छत्तीसगढ़ी व्यंजनों के प्रशंसक बन चुके हैं ।उन्होंने ना सिर्फ व्यंजनों का स्वाद लिया बल्कि इस प्रयास की भी भरपूर सराहना की और भविष्य में लगातार इस तरह के मेले के आयोजन को प्रोत्साहित करने का वचन दिया। इस एक दिवसीय व्यंजन मेले में एक तरफ जहां पारंपरिक व्यंजनों का स्वाद जगा तो वही इस स्वाद को चखने बड़ी संख्या में छत्तीसगढ़ी व्यंजनों के असली रसिया भी पहुंचे।