रतनपुर

कई मौतों के बाद अब पैदल लौटने वाले मजदूरों की सुध लेने लगी प्रशासन, सूचना पर की जा रही वाहनों की व्यवस्था

रमेश राजपूत/ जुगनू तंबोली

बिलासपुर/रतनपुर- लॉक डाउन में एक ओर जहाँ कोरोना वायरस का खौफ सभी के जेहन में डर पैदा कर रहा है तो वही अब इस माहामारी की वजह से देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे मजदूरों की स्थिति किसी त्रासदी के जैसे सामने आई है, देश के विभिन्न राज्य अपने क्षेत्र में फंसे ऐसे सभी मजदूरों को वापस उनके घर भेजनें प्रयासों में जुट गए है। भले ही सत्ता सरकारों को जागने में समय लगा हो, लेकिन अब प्रयास शुरू हो गए है।

बीते 45 दिनों के लॉक डाउन अवधि में भुखमरी और लाचारी ऐसे हावी हुई कि अन्य राज्यों में फंसे मजदूर पैदल ही अपने घरों के लिए 500 से 1000 किलोमीटर के रास्ते पर निकल गए, जिनमें से कई की मौत भी रास्ते मे हो चुकी है, बिलासपुर में बीते दिनों झारखंड के एक मजदूर की मौत पैदल चलने की वजह से बिगड़ी हालत के वजह से हुई थी, वही रेलवे ट्रेक पर आराम कर रहे 16 मजदूरों की मौत ने पूरे देश को सोचने पर मजबूर कर दिया है।

अब भी हजारों की तादात में इन मजदूरों के घर लौटने का सिलसिला जारी है, प्रदेश में भी राज्य सरकार ने एक आदेश जारी कर सभी तरह की सहूलियतें मुहैया कराने निर्देश जारी किए है, जिसमें प्रदेश आने वाले या यहाँ से गुजरने वाले श्रमिक, मजदूरों को भोजन, पानी, स्वास्थ्य सुविधा सहित यात्रा के लिए संसाधन उपलब्ध कराएं जाएंगे।

18 मजदूर 10 बच्चों सहित मध्यप्रदेश से पहुँचे रतनपुर

इसीक्रम में मध्यप्रदेश के रीवा जिले में फंसे 10 बच्चों सहित 18 मजदूर शुक्रवार की देर रात रतनपुर पहुँचे, जिन्होंने बताया कि मध्यप्रदेश की सरकार ने उन्हें अमरकंटक तक पहुँचाया, जहाँ से वह पैदल केंवची तक पहुँचे जहाँ से पुलिस जवानों द्वारा वाहन से रतनपुर तक आये है, यहां से आगे उन्हें मुंगेली जिले के लोरमी तहसील अंतर्गत ग्राम सिंघनपुरी जाना है,

मजदूर परिवार की स्थिति देखकर रतनपुर के मीडिया कर्मियों, तहसीलदार सहित महामाया मंदिर ट्रस्ट के द्वारा हर संभव प्रयास कर भोजन सहित अन्य सहयोग उपलब्ध कराया गया, जिनके द्वारा मंदिर ट्रस्ट के माध्यम रात और सुबह भोजन आदि की व्यवस्था की गई और इसके बाद मुंगेली जिले के प्रशासनिक अधिकारियों से चर्चा कर वाहन की व्यवस्था उपलब्ध कराई गई, जिसमें सभी 28 लोगों को सकुशल उनके घर रवाना किया गया।

पैदल लौटना मजदूरी…..

मजदूरों के लौटने से निश्चित ही संक्रमण का खतरा बढ़ गया है, लेकिन उनकी जिंदगी भी उतनी ही कीमती है जितने दूसरे लोगों की लिहाज़ा सरकारों को ऐसे निर्णय लेने की पहले ही जरूरत थी, ताकि अब तक जो जिंदगियां अपनी सांसे थाम चुकी है उनकी तरह कोई और मजदूर बेबस न हो।

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