
पार्टी हाईकमान से मिले निर्देश के अनुसार ही दोनों ने वही बताया जो उन्हें बताने को कहा गया था
बिलासपुर प्रवीर भट्टाचार्य
लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कई मुद्दों को टटोलतें नजर आए थे। एक बारगी तो ऐसा लग रहा था जैसे 2019 के चुनाव में वे राफेल से ही लक्ष्य साधेगे लेकिन विधानसभा चुनाव में मिली कामयाबी ने शायद उन्हें यह समझ दे दी कि वोटर को रिझाने के लिए आर्थिक पैकेज से बेहतर विकल्प हो ही नहीं सकता। इसीलिए उन्होंने न्यूनतम आय योजना का मास्टर स्ट्रोक खेला है। भले ही योजना की घोषणा के बाद से ही राहुल गांधी खुद अपने बयानों में विरोधाभासी नजर आए हैं ,लेकिन अब तक जो लब्बो लुआब निकल कर आया है उसके अनुसार सबसे गरीब 5 करोड़ लोगों को सालाना 72,000 रुपये देने की योजना है। अर्थशास्त्री इसे असंभव बता रहे हैं और इससे देश की आर्थिक व्यवस्था की चूले हिल जाने का हवाला दे रहे हैं ,लेकिन पिछले कुछ दशकों से चुनाव से पहले मतदाताओं को इसी तरह का प्रलोभन देकर सत्ता हासिल किया जा रहा है। कभी एन टी रामा राव ने इसकी शुरुआत की थी और आज कांग्रेस इसी को सफलता का मूल मंत्र मान रही है। गुरुवार को बिलासपुर में शहर और ग्रामीण अध्यक्ष ने प्रेस कॉन्फ्रेंस लेकर यह दावा किया कि अगर केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनती है तो तुरंत न्यूनतम आय योजना को लागू किया जाएगा, ठीक उसी तरह जिस तरह प्रदेश में सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने किसानों के कर्ज माफी और बोनस के वायदे को पूरा किया था। उन्होंने दावा किया कि रायपुर में किसान रैली के दौरान ही राहुल गांधी ने ऐलान किया था कि देश के अति गरीब परिवारों के लिए न्यूनतम आय योजना लागू की जाएगी। उनका दावा है अर्थशास्त्रियों से चर्चा के बाद ही उन्होंने यह ऐलान किया है जिसमें देश के 20% गरीब आबादी को सीधे उनके खाते में 72000 रुपये दिए जाएंगे। यह रकम महिलाओं के खाते में जमा होगी। इस योजना को उन्होंने दुनिया की सर्वश्रेष्ठ योजना करार दिया। उन्होंने यह दावा भी किया कि इस योजना को लागू करने के लिए मौजूदा कल्याणकारी योजनाओं को बंद नहीं किया जाएगा। लेकिन इसके लिए वित्त की व्यवस्था कैसे की जाएगी यह जवाब दोनों ठीक से नहीं दे पाए। पत्रकारों के कई सवालों में विजय केशरवानी और नरेंद्र बोलर उलझते भी नजर आए। उनके पास इस सवाल का जवाब नहीं था कि 5 करोड़ लोगों को मिलने वाली योजना के लिए देश के 125 करोड़ लोग उन्हें वोट क्यों दें, जबकि उन्हें मालूम है कि उन पर ही टैक्स का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। इस सवाल पर भी दोनों निरुत्तर नजर आए जब उनसे पूछा गया कि किसी को मुफ्त में मदद देने की बजाय अगर उन्हें कोई काम देकर वेतन के रूप में रकम दिया जाए तो उन्हें भी आत्म सम्मान और स्वावलंबन का एहसास होगा। पार्टी हाईकमान से मिले निर्देश के अनुसार ही दोनों ने वही बताया जो उन्हें बताने को कहा गया था।