
हरिशंकर पांडेय
बिलासपुर – शिक्षा, शिक्षक और शिक्षा की गुणवत्ता इन सब पर प्रश्न चिन्ह उठने लगे है खासकर मस्तूरी क्षेत्र में हुए स्कुलो से सम्बंधित विवादों और खामियों को लेकर जो यह दर्शाती है कि कही न कही शिक्षा विभाग में बच्चों के भविष्य को लेकर गम्भीरता में कमी है। आखिरकार ये हो क्या रहा है, कोई स्कूल का चपरासी बच्चे से गुटका मंगवा रहा तो कहीं खुले आम बर्थ डे पार्टी के नाम पर बियर पार्टी चल रही है इसके अलावा आवासीय परिसर में रहने वाली छात्रा अपने अधीक्षक के रवैये से परेशान होकर चक्का जाम करने पर मजबूर हो रहे है ऊपर से तहसीलदार की छात्राओं को जेल भेजने की धमकी। इससे पहले एक स्कूल के शिक्षक का स्कूल में बैठकर खुलेआम शराब पीने का गम्भीर मामला सामने आया था। ऐसे ही कई मामले सामने आ चुके है जिससे मस्तूरी क्षेत्र के शिक्षा प्रणाली पर सवाल उठा रहा है। नए शिक्षा सत्र प्रारम्भ हुए अभी डेढ़ माह ही हुए है कई स्कूलो में बच्चों की पढ़ाई ठीक से चालू भी नही हो पाई है और इस तरह के गम्भीर मामलो का आना बच्चो के लिए ठीक नही है ऐसे में अब शिक्षा विभाग के जिम्मेदारी उच्चाधिकारियों के साथ प्रशासनिक अधिकारियों को तालमेल बनाकर स्कुलो की खामियों को दूर करना होगा जिससे बच्चे स्वच्छ वातावरण में पढ़ाई कर सकें। वैसे भी सरकारी स्कूलों की अव्यवस्था को लेकर अभिभावकों का गुस्सा हमेशा फूटता ही रहता है परन्तु सुव्यवस्थित व्यवस्था बनाने गम्भीरता से काम नही हो पाता, नतीजतन ऐसे मामले सामने आते है।
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने पैमाने आखिर है क्या….
शिक्षा को लेकर केंद्र व राज्य शासन की तमाम बड़ी योजनाए है जिसमे निःशुल्क पुस्तक, ड्रेस, मध्यान्ह भोजन, बच्चियों के लिए सायकल, सुसज्जित स्कूल भवन, स्वच्छ शौचालय, पीने के शुद्ध पानी के अलावा प्रशिक्षित टीचर सहित ऐसी कई सुविधाए है जो सरकार उपलब्ध कराने प्रतिबद्ध है जिसके लिए विशेष पैकेज दिया रहा है इसके बावजूद भी स्कूलो की व्यवस्था में सुधार नही हो पा रहा है। आए दिन ऐसे मामले सामने आते है कि कही स्कूल बिल्डिंग नही है तो कही कई विषयो के टीचर नही है तो कही के छत गिर रहे है। आखिकार पर्याप्त बजट व संसाधन उपलब्ध कराने के बावजूद भी सरकारी स्कूल बदनाम क्यो है। इन्ही सब मामलों के बीच कुछ ऐसे भी सरकारी स्कूल है जहां के शिक्षक समर्पित होकर, स्कूल को अपने कर्तव्य स्थल मानकर पूरी ईमानदारी के साथ काम करते है परन्तु ऐसे शिक्षक बिरले ही मिलते है।
अभिभावकों को सामने आना होगा….
कोई भी माता पिता अपने बच्चों को इसीलिए स्कूल भेजते है कि उनके बच्चे अच्छे से पढ़ लिख ले तो भविष्य में कुछ कर सके और समाज को अपना सकारात्मक योगदान दे सके। परन्तु ऐसे मामले सामने आने पर अभिभावक भी चिंतित हो जाते है कि उनके बच्चे ऐसे माहौल में क्या शिक्षा ग्रहण करते होंगे, खासकर सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों के मन में ये बात रहती है पर वे क्या करें… परिस्थितिवश सरकारी स्कूल में दाखिला दिलाना मजबूरी है। तब ऐसे में अभिभावकों की जिम्मेदारी है कि हफ्ते में एक बार स्कूल विजिट कर वस्तु स्थिति से वाकिफ हो और कोई कमी रह गई हो तो शिक्षको को बता सके। ऐसे ही सभी अभिभावक स्कुलो की विजिट करते रहेंगे तो शिक्षको पर दबाव भी होगा और अनुचित कदम उठाने की हिम्मत नही कर पाएंगे।
प्रशासनिक कसावट के साथ जिम्मेदारी तय होनी चाहिए….
स्कुलो के किसी भी मामले को गम्भीरता के साथ शिक्षा विभाग व प्रशासनिक अधिकारियों को देखना होगा जिसके लिए दोषी शिक्षक या अन्य कोई भी हो उन पर जिम्मेदारी तय होने के बाद कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए।