प्रवीर भट्टाचार्य

मंगलवार सुबह तोरवा छठ घाट पर एकबारगी तो ऐसा लगा कि जैसे छठ पर्व मनाया जा रहा हो। यहां 10,000 से अधिक लोग सुबह सुबह पहुंच गए थे। बिलासपुर की जीवनदायिनीअरपा नदी मृत प्रायः है। पेंड्रा अमरपुर से चलकर बिलासपुर पहुंचते-पहुंचते नदी का दम कई जगह घोटा गया है। इसी वजह से अब अरपा नदी हांफती, कराहती, बिलासपुर तक पहुंचती है और बरसात के मौसम में भी नदी में पूरा पानी नजर नहीं आता। उससे भी बुरी बात यह है कि अरपा नदी में पानी का ठहराव बिल्कुल नहीं हो रहा। दरअसल भौगोलिक बनावट की वजह से पेंड्रा और मरवाही से नदी ढाल पर उतरती है । वही बिलासपुर पहुंचते-पहुंचते नदी समतल हो जाती है। आगे मस्तूरी के पास फिर से नदी ढाल में बहने लगती है। यही वजह है कि बिलासपुर में सिल्ट जमा हो जाता है और इसी कारण अरपा नदी का पानी जमीन के भीतर नहीं रिस रहा।

कभी अरपा नदी अंतः सलिला हुआ करती थी यानी ऊपर से नदी नजर ना भी आए तो भी भीतर भीतर पानी बहता रहता था, लेकिन यह सब इतिहास की बात हो चुकी है। नई पीढ़ी ने तो बरसात के मौसम को छोड़कर किसी और मौसम में अरपा नदी में पानी तक नहीं देखा। अगर इस पीढ़ी ने दयालबंद और तोरवा क्षेत्र में नदी में पानी देखा है तो दुर्भाग्य से वह पानी शहर की नालियों का पानी है , जिसे बड़ी बेरहमी से अरपा नदी में मिलाया जा रहा है। बेहद गंदा मल मूत्र युक्त पानी को अरपा नदी में मिलाकर इस नदी को दूषित, प्रदूषित करने का में कोई कसर नहीं छोड़ी गई है, लेकिन इन्हीं कोशिशों का ही परिणाम है कि आज बिलासपुर में भूगर्भ जल समाप्त होने की कगार पर है।

यही वजह है कि जिला प्रशासन की नींद खुल चुकी है। अरपा नदी की सफाई और अरपा के तट पर बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण अभियान चलाने के लिए दो दिवसीय अरपा उत्थान अभियान जिला प्रशासन, नगर निगम और स्मार्ट सिटी बिलासपुर द्वारा चलाया गया है। इसके लिए आम लोगों की सहभागिता मांगी गई थी और बिलासपुर के लोगों ने हमेशा की तरह अपनी जागरूकता का परिचय दिया। लोग तड़के ही यहां इकट्ठा होने लगे थे। देखते ही देखते 10,000 से अधिक लोग छठ घाट पर इकठ्ठा हो गए। 20,000 से अधिक हाथों ने फिर अरपा नदी को प्रदूषण मुक्त करने अपना योगदान दिया। नदी में जमा हो चुके जलकुंभी को निकालने की प्रक्रिया के साथ ही नदी के दोनों तटों पर गड्ढे बनाए गए, जिसमें बरसात होते ही 4 से 5 फुट ऊंचे तैयार वृक्ष लगाए जाएंगे ,ताकि वे जल्द ही मिट्टी को पकड़ ले और अरपा के तटों को कटाव से बचाए । इन्हीं पेड़ पौधों की वजह से अरपा का पानी भी जमीन के नीचे जाएगा और संचित भी होगा। जिला प्रशासन और नगर निगम ने जब यह प्रयास किया तो उन्हें भी उम्मीद नहीं थी कि उन्हें लोगों का इस कदर सहयोग मिलेगा । आम लोगों के साथ प्रशासनिक मशीनरी भी इसमें शामिल रही।

कई तरह के उपकरण हैंड ग्लव्स, मास्क के साथ पहुंचे संस्थाओं ने लोगों को यह सामान उपलब्ध कराएं। यहां सभी ने स्व स्फूर्त, स्व प्रेरित होकर अरपा नदी को बचाने की कोशिश की ।आम लोगों की सहभागिता से अंतः सलिला अरपा नदी को प्रदूषण मुक्त करते हुए जल संवर्धन और जल संरक्षण के इस अभूतपूर्व प्रयास के पहले दिन काफी कुछ काम हुआ। अब बुधवार को भी यही प्रयास किया जाएगा। वैसे कुछ लोगों का मानना है कि केवल 2 दिनों के अभियान से अरपा नदी का प्रदूषण समाप्त नहीं हो सकता। इसके लिए समय सीमा से परे निरंतर अभियान की आवश्यकता है। वहीं मंगलवार को जिस तरह लोगों ने इस अभियान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया उससे उम्मीद बंधी है कि अगर यही लोग सरकारी अभियान की बांट ना जोहोते हुए अगर रोज अपने स्तर पर ही अरपा नदी को बचाने इसी तरह का प्रयास करें तो फिर अरपा नदी पहले की तरह हो सकती है ,लेकिन जिला प्रशासन को भी कुछ कदम उठाने ही होंगे । जैसे शहर की जिन नालियों का मुंह अरपा नदी में खोल दिया गया है, उनके साथ बड़े-बड़े पाइपलाइन अरपा नदी के दोनों किनारों में बिछाते हुए शहरी इलाके से उस गंदे पानी को चेक डैम के उस पार तक उतारना होगा। संभव हुआ तो उसे फ़िल्टर कर वापस नदी में मिलाया जा सकता है। इतना बड़ा काम जिला प्रशासन और बड़े संस्थाओं की मदद से ही मुमकिन है। फिलहाल अरपा की सफाई के साथ अगर वृक्षारोपण भी हो गया तो भी काफी हद तक अरपा का कल्याण हो सकता है, लेकिन जब तक अरपा नदी में शहर की नालियों का पानी मिलता रहेगा, अरपा का पानी यूं ही प्रदूषित रहेगा। यह चिंतन का विषय है । खैर मंगलवार को जिस तरह 10,,000 से अधिक लोगों ने अरपा को बचाने में अपना योगदान दिया ,उससे यह उम्मीद तो बंध ही रही है कि यहां के लोग अगर ठान ले तो फिर हर नामुमकिन को मुमकिन किया जा सकता है।
