
अक्सर मौत के बाद परिजनों द्वारा संपत्ति को लेकर विवाद की स्थिति बनती है लेकिन मृत देह को लेकर अधिकारों की ऐसी लड़ाई हमेशा नहीं होती इसलिए इस घटना ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा और सिम्स परिसर में सोमवार को यह चर्चा का विषय बना रहा

सत्याग्रह डेस्क
कहते हैं जब संत कबीर दास महानिर्वाण को प्राप्त हुए तो उनकी अंतिम क्रिया के लिए हिंदू और मुसलमान अनुयायियों के बीच इस बात को लेकर विवाद छिड़ गया कि उनके पार्थिव देह पर किसका अधिकार है। आमतौर पर मृत शरीर को लेकर ऐसी खींचतान नहीं देखी जाती, लेकिन सोमवार को सिम्स में ऐसा ही कुछ नजारा देखा गया, जब एक व्यक्ति की मौत के बाद उसके शव को लेकर दो पक्ष अधिकारों की लड़ाई के नाम पर भिड़ गए। यह मामला घरवाली और बाहरवाली के बीच होने की वजह से लोग मौन तमाशा देखते रहे। दरअसल ग्राम सेमरा में रहने वाले प्रदीप खरे की तबीयत लंबे समय से खराब थी और उनका इलाज सिम्स में चल रहा था। आखिरकार प्रदीप ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। प्रदीप खरे की दो पत्नियां हैं । इलाज के दौरान भी दोनों पत्नियों ने उसकी सेवा की और जब प्रदीप की मौत हो गई तो उसके शव पर अंतिम संस्कार के लिए भी दोनों पक्ष अपना अपना अधिकार बता कर आपस में भिड़ गए।

इस दौरान प्रदीप खरे की दोनों पत्नियां और उनके रिश्तेदार मौजूद थे जो प्रदीप के शव पर अपना अधिकार जता कर उसे अपने गांव अंतिम संस्कार के लिए ले जाने की जिद करने लगे। प्रदीप खरे की एक पत्नी उसे ससुराल गांव सेमरा ले जाने के पक्ष में थी तो वहीं दूसरी पत्नी उसे नगोई ले जाना चाहती थी ।प्रदीप की दोनों पत्नियों के बीच आरंभ विवाद में धीरे धीरे रिश्तेदार भी शामिल हो गए और नौबत गाली-गलौज और मारपीट तक जा पहुंची । इस वजह से सिम्स परिसर में हंगामे की स्थिति उत्पन्न हो गई ।विवाद को बढ़ता देख आखिरकार यहां के सुरक्षाकर्मियों ने मामले में दखल दिया और किसी तरह बीच-बचाव कर आपसी सहमति बनाई।

जिसके बाद दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हुए कि प्रदीप खरे का अंतिम संस्कार दोनों पक्ष मिलकर करेंगे और फिर शव को लेकर गांव की ओर रवाना हो गए। अक्सर मौत के बाद परिजनों द्वारा संपत्ति को लेकर विवाद की स्थिति बनती है लेकिन मृत देह को लेकर अधिकारों की ऐसी लड़ाई हमेशा नहीं होती इसलिए इस घटना ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा और सिम्स परिसर में सोमवार को यह चर्चा का विषय बना रहा।