
उदय सिंह
बिलासपुर – शिक्षा के मंदिर कहलाने वाले सरकारी स्कूलों की हालत देखकर आज भी ग्रामीणों का यह भरोसा टूटता जा रहा है कि उनके बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल पाएगी। सरकार ने शिक्षकों की कमी दूर करने और शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया अपनाई,
लेकिन मस्तूरी विकासखंड अंतर्गत संचालित शासकीय स्कूल ओखर की स्थिति इस नीति की पोल खोल रही है। दिनांक 21 अगस्त 2025 को जब पत्रकारों की टीम सुबह 10 बजे विद्यालय पहुँची तो प्रार्थना के लिए सभी बच्चे स्कूल प्रांगण में एकत्र थे।
लेकिन हैरानी की बात यह रही कि 32 पदस्थ शिक्षकों में से मात्र 5 शिक्षक ही समय पर पहुँचे थे। बाकी 27 शिक्षक गायब थे और उन पर रोक-टोक करने वाला कोई नहीं था। प्राचार्य आर एम डार्के स्वयं इस लापरवाही के सामने बेबस नजर आए। ग्रामीणों की शिकायतें पूरी तरह सही साबित हुईं। ग्रामीणों का आरोप है कि वर्षों से यही स्थिति बनी हुई है। शिक्षक मनमर्जी से आते-जाते हैं, जिससे बच्चों की पढ़ाई पर सीधा असर पड़ता है।
यही कारण है कि शाला भवन और पाठ्यपुस्तकें उपलब्ध होने के बावजूद छात्र अपेक्षित ज्ञान से वंचित रह जाते हैं। प्राचार्य का कहना है कि शिक्षकों की लेटलतीफी का बड़ा कारण उनका मुख्यालय से दूर निवास करना है। अधिकांश शिक्षक 40 से 50 किलोमीटर दूर से रोजाना स्कूल आते हैं, जिससे वे समय पर नहीं पहुँच पाते। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या इसका खामियाजा बच्चों के भविष्य को भुगतना चाहिए?
गाँव के जागरूक लोगों का आरोप है कि जिला शिक्षा अधिकारी और संयुक्त संचालक कार्यालय के अधिकारी कभी भी इन विद्यालयों का निरीक्षण नहीं करते। यही कारण है कि शिक्षकों का मनोबल इतना बढ़ा हुआ है कि वे सरकारी वेतन और सुविधाएँ पाने के बावजूद जिम्मेदारी निभाने में रुचि नहीं ले रहे।
शिक्षा विभाग के अधिकारी एसी केबिन से बाहर निकलना नहीं चाहते और निचले स्तर पर अव्यवस्था का बोझ सीधे छात्रों और पालकों पर पड़ रहा है। ग्रामीणों ने चेताया है कि यदि जिम्मेदार अधिकारी समय रहते इस स्थिति पर नियंत्रण नहीं करते तो आने वाले समय में वे बड़े आंदोलन का सहारा लेंगे।
बच्चों का भविष्य किसी की लापरवाही से बर्बाद नहीं होने दिया जाएगा। यह स्थिति केवल ओखर तक सीमित नहीं है, बल्कि जिले के कई विद्यालयों में शिक्षकों की यही मनमानी देखने को मिल रही है। सवाल यह है कि क्या सरकार द्वारा चलाए जा रहे शिक्षा सुधार अभियान और युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया मात्र कागजों में ही सीमित रह जाएगी? बच्चों का भविष्य सँवारने की जिम्मेदारी जिस शिक्षा विभाग पर है,
वही विभाग अगर आँख मूँद ले तो पालकों की उम्मीदें टूटना स्वाभाविक है। सरकार को चाहिए कि ऐसे स्कूलों का आकस्मिक निरीक्षण कर दोषी शिक्षकों पर सख्त कार्रवाई करे, ताकि बच्चों को समय पर शिक्षा मिल सके और शिक्षा व्यवस्था पर से लोगों का भरोसा न उठे। बिलासपुर जिले के जिम्मेदार अधिकारियों के लिए यह स्थिति किसी चेतावनी से कम नहीं है।
अब यह देखना होगा कि प्रशासन इस लापरवाही पर कितनी गंभीरता से कदम उठाता है और क्या सच में गरीब बच्चों को ज्ञान की रोशनी समय पर मिल पाएगी या यह केवल कागजी वादों तक ही सीमित रह जाएगी।