सतविंदर सिंह अरोरा

जल ही जीवन के नारे को केवल नारा मात्र घोषित करते हुए शहर में बहते टैंकरों से पानी की आपूर्ति की जा रही है। इस बात का कतई ध्यान नहीं रखा जा रहा कि हजारों लीटर शुध्द भू-पेयजल सड़कों पर परिवहन के दौरान बहा जा रहा है। जिम्मेदारों का इस बात पर और टैंकरों की मरम्मत पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं है। नाम नहीं बताने की शर्त पर एक टैंकर चालक ने कहा जी उसने कई बार इस बारे में शिकायत की किन्तु इसे बनवाने में टैंकर मालिक रुचि नहीं दिख रहा। क्या इस तरह की लापरवाही पर कोई कार्यवाही की जा सकती है?