
रतनपुर जुगनू तंबोली

रतनपुर- मां महामाया की नगरी रतनपुर जिसे लहुरीकाषी के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर रामटेकरी के ठीक नीचे स्थापित है बूढा महादेव का मंदिर इस मंदिर को वृध्देष्वरनाथ के नाम से भी पुकारा और जाना जाता है। कहते है कि बुढा महादेव मंदिर में स्थापित शिवलिंग स्वंयभू है और यदि इसे गौर से देखें तो भगवान शिव की जटा जिस प्रकार फैली होती है ठीक उसी प्रकार दिखलाई देती है। शिवलिंग के तल पर स्थित जल देखने पर ऐसा प्रतीत होता है मानों पुरी आकाषगंगा या ब्रम्हांण्ड इसमें समाया हुआ हो।

इस शिवलिंग में जितना भी जल अर्पित कर ले उसका जल उपर नहीं आता और शिवलिंग के भीतर के जल का तल एक सा बना रहता है इस शिवलिंग पर चढाया जल कहां जाता है आदिकाल से आज तक इस रहस्य को कोई ना जान सका है, महाशिवरात्रि में भगवान शिव के इस अदभूत शिव लिंग पर जलाभिषेक करने हजारों की तादात में श्रध्दालुओं की भीड़ यहाँ उमड़ती है।
पुरातन काल से चली आ रही पूजा…

वृध्देष्वरनाथ मंदिर प्राचीन मंदिर है 1050 ई में राजा रत्नदेव दवारा इस मंदिर का र्जीणोध्दार किया गया था। यह मंदिर कितना पुराना है इस बात की जानकारी नही है। इस मंदिर को लेकर अनेक किवदंती है उसके बारे में बतलाते हुए कहते है कि वर्शो पहले एक वृध्दसेन नामक राजा हुआ करता था जिसके पास अनेंक गाये हुआ करती थी जिसे लेकर चरवाहा जंगल में चरानें जाता था तो उसके साथ चरने गई गायों में एक गाय झुण्ड से अलग होकर बांस के धनी धेरे में धुस जाया करती थी और वहां अपने थनों से दुग्ध छरण कर रुद्राभिशेक किया करती थी यह कार्य प्रति दिन होता था। चरवाहे नें गाय का रहस्य जान इस बात की जानकारी राजा रुद्रसेन को दी राजा ने भी इस बात की पुश्टी कर आष्चर्य किये बिना ना रह सका।

लेकिन राजा को बात समझ नहीं आई उसी रात भगवान ने राजा को स्वप्न देकर अपने होने का प्रमाण दिया और उस स्थान पर मंदिर बनाये जाने और पूजा किये जाने की बात कही और इस प्रकार राजा वृध्दसेन ने अपने नाम के साथ भगवान का नाम जोड़कर मंदिर का नाम वृध्देष्वरनाथ मंदिर रखा। आज भी भक्तो के साथ साथ कांवरिये आते है और भगवान भोलेनाथ को जल अर्पित कर अपनी मंगलकामना करते है।