
उदय सिंह
अब इसे चिराग तले अंधेरा ना कहे तो फिर भला और क्या कहें ? प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने 15 साल बाद सत्ता में वापसी की है और सरकार का दावा है कि वह किसानों की हितैषी सरकार है । भूपेश बघेल ने नरवा, गरवा ,घुरवा बारी योजना को अपनी महत्वाकांक्षी योजना भी करार दिया है। यानी पूरी कवायद छत्तीसगढ़ी किसानों की हितैषी सरकार की छवि बनाने की है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या सचमुच सरकार के क्रियाकलाप ऐसे ही हैं जैसा की दावा किया जाता है ? कागजों और अखबारों में छपे खबरों में तो आपको भले ही सरकार के दावे बिल्कुल सही लगे ,लेकिन जब आप ग्रामीण इलाकों में किसानों से बातचीत करेंगे तो वहां हालात इतने सुखद भी नहीं मिलेंगे,जैसा कि दावा किया जाता है । मस्तूरी क्षेत्र के ऐतिहासिक और धार्मिक नगरी मल्हार की कहानी भी जुदा नहीं है। मस्तूरी क्षेत्र के सबसे बड़े ग्रामीण इलाके के किसान त्राहि-त्राहि कर रहे हैं ।
तालाबों की नगरी आज बूंद-बूंद पानी को तरस रही है । कहते हैं कभी यहां सोने की बारिश हुआ करती थी, वर्तमान में तो यहाँ आसमान से पानी भी नहीं बरस रहा। पोखर, तालाब सब सूखे पड़े हैं । हालात इस कदर बदतर है कि किसानों के खेत बंजर नजर आ रहे हैं। बारिश ना होने से किसानी पिछड़ चुकी है। सावन खत्म हो चुका है और भादो की शुरुआत हो चुकी है, लेकिन ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि भादो के महीने में भी किसानों की ना तो बियासी हुई है और ना ही रोपा लगा है। अधिकांश किसानों के खेत भगवान भरोसे पड़े हैं। किसान साफ समझ चुके हैं इस बार उनके खेत में एक दाना भी नहीं फूटने वाला।
मगर यहां तो हालात दुबले को दो-दो आषाढ़ वाले हो रहे हैं । एक तो कम बारिश के चलते धान की फसल ठीक से नहीं पा रही, वही दूसरी ओर मल्हार में बेघर , लावारिस मवेशियों की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ रही है। यही मवेशी मौका पाकर खेतों में घुस जाते हैं और बड़ी मुश्किल से उग रहे धान की फसल को पूरी तरह बर्बाद कर दे रहे हैं ।ऐसे मवेशियों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है। इसलिए किसान चाह कर भी उन पर काबू नहीं पा पा रहे ।प्रदेश सरकार बड़े पैमाने पर गोठान निर्माण का दावा कर रही है । उनके योजनाकारों के केंद्र में किसान भी है , किसान की बाड़ी भी है और किसान का गरवा भी है। लेकिन मल्हार में तो सरकार को ना तो किसानों की फिक्र है , ना उनकी बाड़ी की और न हीं उनके गरवा की। मस्तूरी क्षेत्र में छोटे-छोटे ग्रामीण इलाकों में भी गोठान बन चुका है , लेकिन मल्हार जैसे विशाल क्षेत्रफल वाले नगर पंचायत में भी गोठान बनाने की जरूरत नहीं समझी गई। गोठान ना होने से आवारा मवेशी किसानों को बहुत नुकसान पहुंचा रहे हैं। इससे किसान और मवेशियों के संबंध में भी कड़वाहट आ रही है। मौजूदा हालात से परेशान किसानों ने आखिरकार नगर पंचायत अध्यक्ष ठाकुर सुरेंद्र सिंह क्षत्री से गुहार लगाई । पंचायत क्षेत्र के किसानों की दुविधा और समस्या से रूबरू होने शुक्रवार को नगर पंचायत अध्यक्ष ने मल्हार के ठाकुर देव चौक परिसर में आपात बैठक बुलाई। जहां क्षेत्र के 100 से अधिक किसान अपनी समस्या लेकर पहुंचे । अल्प वर्षा से बर्बाद हो रही फसल की चिंता के साथ उन्होंने मवेशियों की समस्या से भी उन्हें अवगत कराया । नगर पंचायत अध्यक्ष ठाकुर सुरेंद्र सिंह क्षत्री ने बताया कि शासन द्वारा उनके पंचायत को ना तो गोठान उपलब्ध कराया गया है और न हीं गोठान के लिए कोई मद प्रदान की गई है, लिहाजा उन्हें अपने ही स्तर पर प्रयास करने की आवश्यकता है।
अब तक एक कमरे के मकान में कांजी हाउस का संचालन किया जा रहा था, लेकिन अब मवेशियों की बढ़ती संख्या से उन्हें वहां रख पाना मुमकिन नहीं, लिहाजा नगर पंचायत अध्यक्ष ने स्वयं पहल कर चार कमरों की व्यवस्था की है, जिसे अस्थाई तौर पर गोठान बनाया गया है। आसपास मौजूद गोवंश और अन्य मवेशियों को पकड़ कर अब इस गोठान में रखने की कवायद शुरू कर दी गई है। सरकारी व्यवस्था और नियम कायदे ना होने से नगर पंचायत के सामने समस्या यह भी है कि वह आखिर गोठान का खर्च किस फंड से वहन करे। जाहिर है इसके लिए स्वयं नगर पंचायत अध्यक्ष को अपनी जेब से राशि खर्च करनी पड़ रही है। शासन द्वारा निश्चित गाइडलाइन ना होने से और गोठान में पहुंचे मवेशियों का मालिकाना हक लेने किसी के न पहुंचने से एक ही विकल्प बचता है कि गोठान में मौजूद पकड़े गए मवेशियों को किसी दूरदराज इलाके या फिर जंगल में छोड़ दिया जाए। हालांकि नगर पंचायत ऐसा अमानवीय कदम नहीं उठाना चाहता लेकिन किसानों की हित में ऐसा करने के अलावा उनके पास कोई विकल्प भी शेष नहीं है। आरोप लग रहे हैं कि मस्तूरी क्षेत्र में कांग्रेस की हार और मल्हार में कांग्रेस को कम वोट मिलने की वजह से राजनीतिक विद्वेष के चलते मल्हार के साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है और इसी कारण यहाँ गोठान की व्यवस्था तक नहीं की गई है। अगर आरोपों में सच्चाई है तो फिर यह बेहद अफसोसनाक बात होगी, क्योंकि प्रदेश की कथित किसान हितैषी सरकार के लिए मल्हार और अन्य इलाकों के किसानों में इस तरह भेदभाव करना न्यायोचित नहीं कहा जा सकता । इस बार मल्हार में पर्याप्त बारिश नहीं हुई है और नहर से सिंचाई की सुविधा भी आधे से कम किसानों के खेतों में उपलब्ध है । इसलिए सूखा पड़ना लगभग तय माना जा रहा है। थोड़ी बहुत फसल अगर उग भी सकती थी लेकिन उसे क्षेत्र में आसपास से पहुंचे मवेशी बर्बाद करने पर उतारू है। ऐसे में नगर पंचायत अध्यक्ष ठाकुर सुरेंद्र सिंह क्षत्री की पहल कुछ हद तक राहत देने वाली नजर आ रही है। फौरी तौर पर उठाए गए कदम , किसानों की तकलीफ पर मरहम तो लगा सकते हैं, लेकिन यह स्थायी इलाज नहीं है। इसके लिए प्रदेश की सरकार को पहल करनी ही होगी और मल्हार में भी पूर्णकालिक गोठान निर्माण सुनिश्चित करनी होगी।
अगर सरकार ऐसा नहीं कर पाती है तो फिर सरकार पर भेदभाव के आरोप तो लगेंगे ही। फिलहाल मल्हार नगर पंचायत अध्यक्ष के उठाए कदम से किसानों ने कुछ हद तक राहत की सांस ली है। वही नगर पंचायत की समस्या यह है कि वह पकड़े गए मवेशियों का क्या करें ? उन पर रोजाना होने वाले खर्च को किस तरह बहन किया जाए और आखिर कब तक उन्हें वे अस्थाई गोठान में इस तरह रखें। यहाँ हालात विस्फोटक है, इसलिए जिला प्रशासन को भी मामले में तुरंत दखल देते हुए किसी तरह की व्यवस्था करनी होगी ताकि मल्हार क्षेत्र के किसानों की इस बड़ी समस्या का समाधान निकल सके।