
फिलहाल देखने वाली बात होगी कि लंबे समय से चल रही झीरम कांड मामले की सुनवाई कबतक पूरी हो पाती है,या फिर बेवजह इसी तरह झीरम मामले सुनवाई लम्बे समय तक चलते रहेगी

बिलासपुर प्रवीर भट्टाचार्य
झीरम घाटी में माओवादियों द्वारा कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष समेत 27 लोगों की हत्या के मामले में षड़यंत्र कर वारदात को अंजाम दिए जाने की जांच अब भी अधूरी है।राज्य शासन ने कांग्रेस की मांग पर मामले की सीबीआइ जांच कराने की घोषणा कर कार्मिक मंत्रालय को पत्र लिखा था।केन्द्रीय मंत्रालय ने 2016 में राज्य शासन को पत्र लिखकर कहा था कि मामले की एनआइए ने जांच पूरी कर ली है।इस वजह से सीबीआइ जांच कराने से इन्कार किया है।
प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अधिवक्ता और न्यायिक जांच आयोग में कांग्रेस की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता सुदीप श्रीवास्तव ने बताया कि 25 मई 2013 को झीरम घाटी में माओवादियों ने घात लगाकर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के तत्कालीन अध्यक्ष नंदकुमार पटेल समेत 27 लोगों की हत्या की थी।जिसके बाद राज्य शासन ने एनआइए को जांच का दायित्व सौंपा था।एनआइए ने मामले की जांच में इस वारदात में माओवादियों के उच्च पदाधिकारियों के शामिल होने की बात कही थी।इसमें वृहद षड़यंत्र कर वारदात को अंजाम दिए जाने का संदेह व्यक्त किया गया था।21 मार्च 2014 को एनआइए के विशेष कोर्ट में चालान पेश किया गया था।इसमें माओवादियों के उच्च पदाधिकारी मुपाल लक्ष्मण राव उर्फ गणपति उर्फ रमन्ना,उर्फ श्रीनिवास जो कि माओवादी संगठन के जोनल सेक्रेटरी थे।इसके अलाव माओवादियों के उच्च पदाधिकारी रवुला श्रीनिवास उर्फ रमन्ना उर्फ संतोष कुन्ता रमन्ना सहित नौ लोगों के नाम शामिल थे।जिसके आधार पर एनआइए ने दोनों को स्थाई रूप से फरार घोषित कराने और स्थाई गिरफ्तारी वारंट जारी करने आवेदन दिया था।फिर बाद में इनकी संपत्ति कुर्क करने आवेदन देकर अनुमति ली गई।वहीं एनआइए ने सितंबर 2015 में पूरक चालान पेश किया।इस चालान मे माओवादियों के दोनों उच्च पदाधिकारियों के नाम हटा दिए गए।वृहद षंड़यंत्र के तहत वारदात होने की बात कहते हुए जांच प्रारंभ करने वाले एनआइए ने बाद में दंडकारण्य जोनल कमेटी के खिलाफ रिपोर्ट पेश की है।अधिवक्ता ने बताया कि मार्च 2016 में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और विधायक की मांग पर मुख्यमंत्री ने मामले की सीबीआइ से जांच कराने की बात कही है।इसके साथ अधिसूचना जारी कर केन्द्रीय कार्मिक मंत्रालय को पत्र जारी किया गया है।केन्द्रीय कार्मिक मंत्रालय ने दिसंबर 2016 में सीएस को पत्र लिखकर झीरम कांड की एनआइए द्वारा जांच पूरी किए जाने का हवाला देकर मामले में अब कोई जांच की आवश्यकता नहीं होने की बात कहते हुए सरकार के प्रस्ताव को खारिज कर दिया।दिसंबर 2016 में सीबीआइ द्वारा जांच से इन्कार कर दिए जाने की जानकारी किसी को नहीं दी गई।इसके अलावा न्यायिक जांच आयोग में जो सुनवाई हो रही है उसका उद्देश्य भविष्य में ऐसी घटना फिर न हो इसके लिए है।लेकिन यहां भी षडयंत्र के चलते कोई सुनवाई नहीं हो रही है।ऐसे में पूरे घटनाक्रम में सीबीआइ द्वारा जांच से इन्कार किए जाने पर एसआइटी जांच जरूरी है।
फिलहाल देखने वाली बात होगी कि लंबे समय से चल रही झीरम कांड मामले की सुनवाई कबतक पूरी हो पाती है,या फिर बेवजह इसी तरह झीरम मामले सुनवाई लम्बे समय तक चलते रहेगी। बहरहाल एनआइए ने झीरम मामले की जांच में इस वारदात में माओवादियों के उच्च पदाधिकारियों के शामिल होने की बात कही थी,जिसमे से दो रमन्ना और गणेश को प्रमुख आरोपी मानकर संपत्ति कुर्क करने की प्रक्रिया शुरू की थी,लेकिन फिर षडयंत्र के तहत चार्ज शीट से दोनो के नाम हटा दिए गए।तो क्या प्रमुख आरोपियों के नाम शामिल किये जायेंगे,या फिर इसी तरह डेट पर डेट देकर झीरम की सुनवाई वर्षों चलते रहेगी।